शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

रुक्‍नों के बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्‍प मालूम होती है । मात्राओं से मिलकर कर जुज़ बनना और जुज़ों से मिलकर रुक्‍न बनना ।

पिछले अंक में हमने ये देखा था कि जो पांच मात्रिक रुक्‍न हैं वे कैसे बनाये जाते हैं । पिछली बार हमने ये भी देखा था कि कुल जो सात मुफ़रद बहरें हैं जो अलग अलग स्‍थाई रुक्‍नों से बनी हैं उनमें से दो मुत‍दारिक तथा मुतकारिब  ये दोनों ही बहरें पांच मात्रिक रुक्‍न के स्‍थाई विन्‍यास से बनीं हैं । और इन दोनों के स्‍थाई पांच मात्रिक रुक्‍न हैं फाएलुन और फऊलुन  । हमने इन दोनों ही रुक्‍नों को बनाने का तरीका पिछले अंक में देखा था । आज बात करते हैं बाकी के 6 रुक्‍नों की । जैसा कि पिछले अंक में  हमने देखा था कि सारी की सारी बहरें कुल आठ प्रकार के रुक्‍नों की ही उत्‍पत्तियां हैं । ये आठ प्रकार के मात्रिक विन्‍यास हैं जो आठ रुक्‍न कहलाते हैं । ये ही वे आठ हैं जो सारी ग़ज़लों के जन्‍मदाता हैं ।

आज कुछ पिछली बातें करने के लिये ये पोस्‍ट लिखी है । पिछली बातें इसलिये करनी ज़ुरूरी हैं कि अब जो काम हम करने वाले हैं उसमें पिछले अध्‍यायों की आवश्‍यकता बहुत पड़नी है । कई सारे लोग ऐसे हैं जो कि नये आये हैं । वे सुबीर संवाद सेवा के साथ प्रारंभ से नहीं जुड़े हैं । इसलिये मुझे लगता है कि उनकी सुविधा के लिये एक बार पिछले एक पाठ का जो कि सुबीर संवाद सेवा से लिया जा रहा है लेकिन उसमें काफी परिवर्तन किये जा रहे  हैं ।

बहरें

यदि हम बहरों की परिभाषा निकालना चाहें तो वो कुछ यूं होगी कि निश्चित रुक्‍नों के निश्चित क्रम को एक विशिष्‍ट बहर कहा जाता है । जैसे रुक्‍नों की परिभाषा ये है कि निश्चित जुज़ों के निश्चित क्रम को रुक्‍न कहा जाता है । जैसे जुज़ की परिभाषा ये है कि निश्चित मात्राओं के निश्चित क्रम को जुज़ कहते हैं ।

बहरों के बारे में हम पहले ये जान चुके हैं कि बहरें मूल रूप से दो प्रकार की होती हैं । मुफ़रद और मुरक्‍कब

पहले बात करते हैं मुफ़रद बहरों की ।

मुफ़रद बहरें  ये बहरें एक ही प्रकार के रुक्‍नों के संयोग से बनती हैं । अर्थात इनके बनाये जाने में केवल एक ही प्रकार का रुक्‍न उपयोग किया जाता है । ये कुल सात प्रकार की होती हैं तथा हरेक का अपना अपना स्‍थाई रुक्‍न होता है ।

1 बहरे मुतदारिक : स्‍थाई रुक्‍न फाएलुन ( 212 ),  2 बहरे मुतकारिब - स्‍थाई रुक्‍न फ़ऊलुन ( 122 )

3 बहरे हजज : स्‍थाई रुक्‍न मुफाईलुन ( 1222) ,   4 बहरे वाफ़र : स्‍थाई रुक्‍न मुफाएलतुन ( 12112)

5 बहरे रजज : स्‍थाई रुक्‍न मुस्‍तफएलुन  ( 2212),  6 बहरे कामिल : स्‍थाई रुक्‍न मुतफाएलुन ( 11212 )

7 बहरे रमल : स्‍थाई रुक्‍न फाएलातुन ( 2122 )

ये कुल मिलाकर सात मुफरद बहरें हैं जो कि सात प्रकार के रुक्‍नों से बनी हैं । इनमें से भी यदि आप  हजज और वाफ़र  तथा  रजज और कामिल  को गौर से देखें तो आप पाएंगें कि इन दोनों का ही मात्रिक विन्‍यास लगभग एक जैसा नज़र आ रहा है । हजज के 1222 में जो तीसरे नंबर की दीर्घ है वो वाफर में आकर 11 हो गई है । इसी प्रकार से रजज की 2212 में पहली दीर्घ कामिल में 11 हो गई है । अब आप कहेंगें कि उससे क्‍या फर्क पड़ा बात तो एक ही रही । जी नहीं बात अलग हो गई है । जब हम 11 लिखते हैं तो उसका मतलब होता है कि हम दो स्‍वतंत्र लघु मात्राओं की बात कर रहे हैं । न अगर कहीं इसका वज्‍न 11212 है ये कामिल का रुक्‍न है । तुम हो कहीं  इसका वज्‍न 2212 है ये रजज का रुक्‍न है । क्‍या फर्क है ? फर्क ये है कि न अगर कहीं  में जो   है वो अगर  के   के साथ संयुक्‍त नहीं हो रहा है । दोनों अपने स्‍थान पर स्‍वतंत्र हैं । जबकि तुम हो कहीं  में दोनों मात्राएं संयुक्‍त होकर दीर्घ हो गई हैं । न शाम अगर  का वज्‍न होगा 12112 अर्थात ये बहरे वाफर का रुकन है ( जो उर्दू हिंदी में नहीं के बराबर उपयोग होती है । ) जबकि न शामों को   का वज्‍न 1222 होगा जो हमारी सबसे पापुलर बहर हजज का रुक्‍न है । इस छोटे से अंतर के चलते दो अलग प्रकार के रुक्‍न बन जाते हैं और दो अलग प्रकार की बहरें जन्‍म लेती हैं ।

तो इस प्रकार से सात मात्रिक विन्‍यास के 6 रुक्‍न हुए 1222, 12112, 2212, 11212, 2122 और अंत में 2221, ये जो अंत में हमने लिया है 2221 ( मफऊलातु ) इस पर कोई भी मुफरद बहर नहीं है लेकिन ये भी स्‍थाई रुक्‍न है । दो 5 मात्रिक रुक्‍न 212,  122 को मिलाकर ये होते हैं कुल आठ स्‍थाई रुक्‍न जिनकी गर्भ से ही सारी की सारी बहरों का जन्‍म होता है ।

अब कुछ लोग पूछ सकते हैं कि सर झुकाओगे तो पत्‍थर देवता हो जायेगा ( बहरे रमल मुसमन महजूफ ) को भी हम मुफ़रद बहर  क्‍यों कह रहे हैं जबकि इसमें तो एक रुक्‍न बदल गया है । और मुफरद बहर की तो परिभाषा है कि उसमें एक ही प्रकार के रुक्‍न आते हैं । जबकि इसमें तो हो रहा है फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन  अब ये जो अखिरी में फाएलुन हो गया है ये तो अलग रुक्‍न आ गया है । दरअसल में ये एक प्रकार की मात्रिक घट बढ़ है जिसमें किया ये गया है कि फाएलातुन की आखिरी की एक दीर्घ मात्रा ( सबब-ए-खफीफ ) हटा दी गई है इसलिये ये 2122 से 212 हो गया है और इस प्रकार अंत की मात्रा को कम करने के तरीके को हज़फ़  करना कहते हैं और इस प्रकार की घट बढ़ से बने रुक्‍न को महजफ ( या महजूफ )  कहते हैं । इसीलिये इसके नाम में बहरे रमल मुसमन के साथ महजूफ  भी लगेगा ये बताने के लिये कि इसमें मूल रुक्‍न से एक सबब-ए-ख़फीफ़ अंत से कम किया गया है ।

जिहाफत : जब किसी स्‍थाई रुक्‍न के मात्रिक विन्‍यास के जुज में किसी प्रकार की घट बढ की जाती है ताकि नया रुक्‍न पैदा हो सके तो उसको जि़हाफ़त कहते हैं । चूंकि ये जो कम बढ़ की जा रही है इसके कारण एक नया रुकन बन गया है । लेकिन ध्‍वनि विन्‍यास में वह अपने मूल रुक्‍न से मिलता जुलता ही है । तो जहां जहां ये जिहाफत की जायेगी वहां वहां जो रुक्‍न पैदा होगा उसे मुज़ाहिफ़ रुक्‍न  कहा जायेगा और उस प्रकार की बहर को फिर मुजा़हिफ बहर कहा जायेगा । जि़हाफ़त  से पैदा हुआ मुजा़हिफ़ ।  अब इस जि़हाफत के कई सारे तरीके हैं । जो तरीका लगाया जायेगा उस नाम का रुक्‍न पैदा होगा । जैसे हमने ऊपर देखा कि जि़हाफत  के लिये हज़फ़ तरीका इस्‍तेमाल किया गया तो जो मुजाहिफ रुक्‍न  बना उसका नाम भी महजूफ  हो गया । इस प्रकार से ये भी ज्ञात हुआ कि जिहाफत के जो कई प्रकार हैं उनमें से एक प्रकार का नाम है हज़फ़ ।

तो अब यहां तक आकर हमारे पास मुफ़रद बहरों में भी दो प्रकार की बहरें हो गईं सालिम और मुज़ाहिफ । इसमें सालिम का मतलब ये कि बहर का मूल रुक्‍न एक बार, दो बार, तीन बार जितनी बार भी आ रहा हो अपने मूल रूप में ही हो, किसी प्रकार की कोई मात्रिक छेड़ छाड़ उसके साथ नहीं की गई हो । जैसे फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन अब इसमें रमल का मूल रुक्‍न चारों बार अपने मूल रूप में दोहराया गया है सो ये सालिम बहर है । लेकिन जैसे ही जिहाफत करके फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन   हुआ वैसे ही ये मुजाहिफ बहर हो गई ।

तो ये तो हुइ मुफरद, सालिम और मुजाहिफ की परिभाषा । अब ये मुरक्‍क्‍ब क्‍या बला है बात करते हैं अगले अंक में । ईश्‍वर ने चाहा तो तो अगला अंक जल्‍दी ही होगा । इस माह में दो तो हो ही गये हैं । मुरक्‍कब की बात करके ही फिर हम बाकी के रुक्‍नों को बनाना सीखेंगें  ।

मुझे लगता है कि अब ग़ज़ल का सफ़र पढ़ने में किसी को कोई दिलचस्‍पी नहीं है नहीं तो ऐसा कैसे होता कि कमेंट 48 से सीधे 8 पर आ गये । या हो सकता है लोगों के पास पढ़ने का समय तो है पर कमेंट का नहीं है । व्‍यस्‍तता का युग है ।

तो अंत में एक बार सारे आठ स्‍थाई रुक्‍नों की लिस्‍ट :-

1 फाएलुन 212

2 फऊलुन 122

3 मुस्‍तफएलुन 2212

4 मुतफाएलुन 11212

5 फाएलातुन 2122

6 मुफाईलुन 1222

7 मुफाएलतुन 12112

8 मफऊलातु 2221

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

बुहत दिनों के बाद यहां पर कोई नई पोस्‍ट लग रही है । इस बीच में काफी कुछ हो गया है । शिवना प्रकाशन का यादगार मुशायरा और सिद्धार्थनगर का यादगार कवि सम्‍मेलन । खैर आज वहां से शुरू करते हैं जहां पर बात को छोड़ा था ।

ग़ज़ल का सफ़र इसको लेकर जिस प्रकार से योजना बनाई थी उस प्रकार से काम तो नहीं हो पा रहा है । उसके पीछे कारण कई हैं लेकिन हां ये बात भी सही है कि यहां पर जिस प्रकार से काम होना चाहिये था उस प्रकार से हो नहीं पा रहा है ।( जिंदगी का दूसरा नाम परेशानियां है ) पहले सोचा था कि सप्‍ताह में एक पोस्‍ट लगाने का । लेकिन उसमें भी परेशानी आई तो फिर माह में एक पोस्‍ट पर बात आई । वो तो ठीक चला लेकिन पिछले कुछ दिनों से वो सिलसिला भी टूट गया । खैर अब जुलाई आ गई है । बहुत अच्‍छी बरसात के एक दो दौर हो चुके हैं तो आज कुछ आगे की ओर बढ़ते हैं ।

पिछले अंक में हमने देखा कि किस प्रकार के और कितने जुज होते हैं । हमने देखा कि सबब-ए-ख़फीफ़, सबब-ए-सक़ील, वतद मजमुआ, वतद मफ़रूफ़, फासला-ए-सुगरा, फासला-ए-कुबरा  ये जुज की कुछ कि़स्‍में हैं । पिछले अंक में हमने देखा था कि जुज का अर्थ होता है मात्राओं को विशिष्‍ट प्रकार से विन्‍यास । और इन विन्‍यासों को ही मिलाकर फिर हम आगे बनाएंगें रुक्‍न । यहां पर ये जानना भी ज़रूरी है कि रुक्‍न कुल मिलाकर आठ प्रकार के ही बनाए गए तथा उन आठ प्रकार के रुक्‍नों से ही बाकी के सारे रुक्‍न बनाये गये । आठ रुक्‍न ही असल रुक्‍न हैं बाकी तो इन रुक्‍नों से ही जन्‍म लिये हैं । खैर इन रुक्‍नों की बात तो हम बाद में करेंगे ही । आज तो बात करते हैं उन तरीकों की जिनसे कि रुकन बनाये गये हैं ।

रुक्‍न :- जैसा कि ऊपर कहा कि कुल मिलाकर आठ ही प्रकार के रुक्‍न हैं ।

खुमासी :- खुमासी रुक्‍न कहा जाता है पांच मात्रिक रुक्‍नों को । स्‍थायी आठ रुक्‍नों में से दो रुक्‍न खुमासी रुक्‍न हैं । जिनमें जुज को इस प्रकार से व्‍यवस्थित किया गया है कि मात्राओं का कुल जोड़ पांच ही आये । इस प्रकार के दो ही रुक्‍न हैं एक है  फऊलुन  और दूसरा फाएलुन  अर्थात 122  तथा 212  के मात्रिक विन्‍यास के रुक्‍न ।

फऊलुन :-  इस रुक्‍न को यदि तोड़ कर देखा जाये तो इसका विन्‍यास कुछ यूं बनेगा 12+2=122 अर्थात एक जुज हमको लेना है 12  विन्‍यास के साथ और एक जुज लेना है 2 विन्‍यास के साथ । हमने पिछले अंक में देखा था कि 12 विन्‍यास का अर्थ है कि पहली दो मात्राएं स्‍वतंत्र हों और तीसरी संयुक्‍त हो तथा इसका नाम हमने दिया था वतद मजमुआ । वतद मजमुआ के उदाहरण में सनम, कहीं, कहां, तुम्‍हें आदि हैं । इसके अलावा 2 विन्‍यास में हमने देखा था कि पहली मात्रा स्‍वतंत्र और दूसरी संयुक्‍त का उदा‍हरण था सबब-ए-ख़फ़ीफ़ । तो इसका मतलब ये हुआ कि यदि हमको पांच मात्रिक फऊलुन रुक्‍न बनाना हो तो दो प्रकार के जुज उठाकर उनकी जुजबंदी करनी होगी । वतद मजमुआ + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ = फ़ऊलुन ( बहरे मुतक़ारिब का स्‍थायी रुक्‍न । ) तो इस प्रकार से हमने आठ स्‍थायी रुक्‍नों में से पहला पांच मात्रिक रुक्‍न बना लिया जिसका विन्‍यास हुआ फ़ऊल़न । उदाहरण :- कहीं पर, तुम्‍हारे, हमारे, इधर हम, उधर तुम, सनम ने, क़सम से ।

फाएलुन :- ये पांच मात्रिक रुक्‍न का दूसरा और अंतिम स्‍थायी रुक्‍न है । याद रखें की बात केवल स्‍थायी रुक्‍नों की चल रही है । तो जो दो पांच मात्रिक रुक्‍न हैं वे हैं फ़ऊलुन तथा फ़ाएलुन उनमें से दूसरे का विन्‍यास देखते हैं । पहले वाले का उल्‍टा विन्‍यास है ये । 21+2=212 इसका मतलब ये हुआ कि हमको जो जुज लेने हैं उनमें एक तो पिछला वाला ही है सबब-ए-ख़फ़ीफ़ जिसका विन्‍यास है 2 प‍हली मात्रा स्‍वतंत्र दूसरी संयुक्‍त । अब जो दूसरा जुज हमको चाहिये वो है 21  अर्थात पिछले का उल्‍टा । तो हमने पिछले अंक में देखा था कि तीन मात्रिक जुज में जब पहली मात्रा स्‍वतंत्र हो दूसरी संयुक्‍त हो और तीसरी फिर स्‍वतंत्र हो तो उस व्‍यवस्‍था को वतद मफ़रूफ़ कहा गया था । वतद मफरूफ के उदाहरण में  आप, शहृर, गांव जैसे शब्‍द आते हैं । तो कुल मिलाकर नतीज़ा ये निकला कि हमने कुछ इस प्रकार से जुज़बंदी की वतद मफ़रूफ़ + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ = फ़ाएलुन इस प्रकार से हमने पांच मात्रिक विन्‍यास का दूसरा तथा अंतिम रुक्‍न फ़ाएलुन ( बहरे मुतदारिक का स्‍थायी रुक्‍न ) बना लिया । उदाहरण : आदमी, जिंदगी, ग़म न कर, रात भर, हम कहां ।

तो इस प्रकार से होती है दो बहरों के स्‍थायी रुक्‍नों की उत्‍पत्ति । ये दोनों ही मुफ़रद बहरें हैं ।  मुतदारिक तथा मुतकारिब । और दोनों ही पांच मात्रिक रुक्‍नों से मिलकर बनी हैं । अब बचते हैं बाकी के 6 रुक्‍न । उनकी जुजबंदी इसलिये मुश्किल है थोड़ी सी कि वे सारे के सारे ही सात मात्रिक हैं । उनमें से पांच रुक्‍नों पर तो बाक़ायदा मुफ़रद बहरें भी हैं । एक रुक्‍न है जिस पर कोई मुफ़रद बहर नहीं है । ये तो आपको पता ही होगा कि कुल मिलाकर सात ही मुफ़रद बहरें  हैं । तो आज उन सात में से दो बहरों के रुक्‍नों का निर्माण हमने कर लिया है । अगले अंक में ( जो जल्‍द ही लाने का प्रयास किया जायेगा इंशाअल्‍लाह । इतनी देर नहीं लगेगी । ) हम बाकी के 6 रुक्‍नों का निर्माण करेंगें ।

( मुफ़रद बहरें :- जो कि एक ही प्रकार के रुक्‍नों के संयोग से बनती हैं । )

क्षमा चाहता हूं कि समय के अभाव के कारण प्रश्‍नोत्‍तर का सिलसिला यहां पर नहीं चला सकता हूं । क्‍योंकि जब पोस्‍ट लगाने के लिये ही समय निकालना पड़ रहा हो तो उसके लिये और मुश्किल होगा । एक निवेदन है यदि कमेंट में कोई प्रश्‍न आता है और आपको लगता है कि उसका उत्‍तर आपके पास है तो उसे कमेंट के माध्‍यम से दे दें । ताकि प्रश्‍न का समाधान हो जाये और मेरा भी काम आसान हो जाये ।

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ग़ज़ल का ध्‍वनि विज्ञान बहुत ही संतुलन का खेल है, इतना कि बहर के बारे में जानने वाला बारीक सी ग़लती को भी केवल कान से सुन कर ही पकड़ लेता है ।

ध्‍वनियां हमारे जीवन में इस प्रकार से भरी हैं कि उनके बिना हमारा काम ही नहीं चलता है । नाद ईश्‍वर के द्वारा दिया गया सबसे अनुपम उपहार है । नाद जो हम क्रमश: चार स्‍थानों से पैदा करते हैं । आम जन मुंह से बोलते हैं इस प्रकार का बोलना कोई प्रभावशाली नहीं होता है । फिर आता है कंठ से बोलना ये प्रभाव उत्‍पन्‍न करता है क्‍योंकि इसमें अधिक बाइब्रेशन होते हैं । फिर ह्रदय से बोला जाता है ये और अधिक बाइब्रेशन उत्‍पन्‍न करता है । चौथा नाद होता है जो सीधे नाभि से आता है । ये नाद सुनने वाले को सम्‍मोहित कर देता है । आपने कुमार गंधर्व साहब को सुना होगा वे नाभि से स्‍वर उत्‍पन्‍न करते थे । ओम के अभ्‍यास से हम अपने स्‍वर को क्रमश: मुंह से कंठ कंठ से ह्रदय और ह्रदय से नाभि में ले जा सकते हैं । हालांकि कंठ से ह्दय मुश्किल और ह्रदय से नाभि बहुत मुश्किल काम है । किन्‍तु अभ्‍यास से सब हो सकता है । ओम की में तीन ध्‍वनियां होती हैं इनमें सबसे अधिक बाइब्रेशन म में होते हैं । आप भी अभ्‍यास करें कभी ओम के साथ और कुछ दिनों के बाद ही आपको लगेगा कि आपके बाइब्रेशन आपके कंठ से नाभि तक दौड़ रहे हैं । कई बारे किसी के बोलने में कुछ ऐसा होता है कि सुनने वाले ठगे से रह जाते है़ । तो क्‍या होता है उसमें ऐसा कि लोग उसको इस प्रकार से सुनते हैं । दरअसल में ये वही बात है कि स्‍वर पूरे कंपन के साथ उत्‍पन्‍न हो रहा है ।

खैर हमने पिछले अंक  में बात की थी जुज़ की तो अपनी उस चर्चा को आज आगे बढ़ाते हैं । और आज बात करते हैं कुछ आगे की ।

ग़ज़ल के सबसे छोटे खंड की चर्चा हम लोग कर रहे हैं । ममलब कि रुकन से भी छोटी इकाइयों की बात हो रही है । हम बात कर रहे हैं जुज़ की । जिन टुकड़ों से रुक्‍न बनते हैं उनको जुज़ कहा जाता है ये हमने पिछले अंक में जाना था । आज हम ये देखते हैं मूल रूप से मात्राओं की कुल कितने प्रकार की व्‍यवस्‍थाएं की गई हैं । या यूं कहें कि कितने प्रकार के जुज बनाए गए हैं । पहले तो हम एक बार जान लें कि लघु और दीर्घ मात्राओं पर ही सारा खेल होता है जो कुछ भी बनाया जायेगा वो इनसे ही बनेगा ।

I लघु  S दीर्घ

मुख्‍य रूप से तीन प्रकार के जुज़ बनाये गये हैं । ये मात्राओं की संख्‍या के आधार पर बनाये गये हैं ।

1 सबब 2 वतद 3 फासला

जानने से पहले हम बात करें दो शब्‍दों की मुतहर्रिक और साकिन । दरअसल में जिन्‍होंने गणित पढ़ी होगी तो उन्‍होंने स्‍टेटिक और डायनामिक शब्‍द सुने होंगें । मैंने नहीं पढ़े क्‍योंकि मैंने गणित नहीं पढ़ी है ।ये दोंनों शब्‍द वहीं से आये हैं । दो हिंदी के शब्‍द होते हैं स्थिर और गतिशील । अंग्रेजी के भी दो शब्‍द हैं dominant and recessive ये भी लगभग वैसे ही शब्‍द हैं । हालांकि अर्थ में कुछ भिन्‍नता हो सकती है । dominant and recessive  ये शब्‍द आनुवांशिकी से आये हैं । हाइब्रिड या संकर नस्‍ल पैदा करते समय एक जीन के कैरेक्‍टर डामिनेंट हो जाते हैं और दूसरे के रेसेसिव रह जाते हैं । जो नयी प्रजाति बनती है उसमें ये प्रभाव साफ दिखाई देता है । यहां पर भी हम मात्राओं के संकर से नया स्‍वर पैदा कर रहे हैं । चूंकि संकर बना रहे हैं इसलिये किसी को डामिनेंट और किसी को रेसेसिव होना ही पड़ेगा । संकर शब्‍द जिनको समझ में नहीं आ रहा हो उनको बता दूं कि जब दो प्रजातियों का कृत्रिम रूप से मेल कर नयी प्रजाति बनाई जाती है तो उस नयी प्रजाति को संकर नस्‍ल कहा जाता है । गेहूं, सोयाबीन और तुवर की अधिक उत्‍पादन वाली काफी सारी संकर प्रजातियां हैं । एक बहुत अच्‍छा उदाहरण है बरसात में उगने वाली गुलमेंहदी । जिसमें कई तरह फूल होते हैं । तो हम भले ही मुतहर्रिक, डायनामिक, गतिशील, डामिनेंट कुछ भी कहें अर्थ लगभग एक ही है और उसी प्रकार चाहे साकिन, स्‍टेटिक, स्थिर, रेसेसिव, सायलेंट कुछ भी कह लें बात एक ही होगी । मतलब ये कि जब आप दो मात्राओं का संकर करके एक नया स्‍वर बना रहे हैं तो उन दोंनों मात्राओं में से कौन सी मुतहिर्रक (डामिनेंट ) रहेगी तथा कौन सी साकिन (रेसिसिव या सायलेंट) हो जायेगी बस ये ही छोटी सी बात है ।

आइये आज बात करते हैं पहले सबब की ।

1 सबब ( दो मात्रिक व्‍यवस्‍था )

दो मात्राओं वाली व्‍यवस्‍था को सबब कहा गया है । अर्थात जब किसी जुज़ को बनाने में कुल मिलाकर दो ही मात्राओं को उपयोग किया गया हो तो उसको सबब कहा जाता है । यह पुन: दो प्रकार का होता है ।

1 सबब ए खफ़ीफ़ 2 सबब ए सक़ील ( नाम से मत उलझियेगा दरअसल में ये अरबी फारसी के नाम हैं आप इनको यूं भी कह सकते हैं कि दो प्रकार की व्‍यवस्‍था है स्‍वतंत्र द्विमात्रिक और संयुक्‍त द्विमात्रिक ।)

 सबब ए ख़फ़ीफ़

वह दो मात्रिक व्‍यवस्‍था जिसमें पहली मात्रा मुतहर्रिक हो तथा दूसरी मात्रा साकिन हो गई हो उसको सबब ए ख़फ़ीफ़ कहा जाता है । इसको हम एक दीर्घ की तरह ही लेते हैं । दो लघु मात्राएं जिनको हम एक दीर्घ की तरह लेते हैं उनके उदाहरण आपको बताने हैं । यानि कि सबब ए ख़फ़ीफ़ के उदाहरण ।

सबब ए सक़ील

वह दो मात्रिक व्‍यसस्‍था जिसमें दोनों ही मात्राएं स्‍वतंत्र हों । अर्थात जब दो लघु मात्राएं इस प्रकार से मिल कर ज़ुज़ बना रही हों कि उन दोनों में से कोई भी सायलेंट नहीं हो रहा हो तो उस स्थिति में हम कहते हैं कि ये सबब ए सकी़ल है । ऊपर भी दो लघु मात्राएं थीं और यहां पर भी हैं बस अंतर इतना है कि ऊपर दो लघु में से एक पहली मुतहर्रिक थी दूसरी साकिन, यहां पर दोनों ही मुतहरर्कि हैं । उदाहरण आप बताएं ।

2 वतद ( तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था )

वतद तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था है । अर्थात इस प्रकार के जुज जिनमें तीन मात्राएं आ रही हों उनको वतद कहा जाता है । यहां पर भी पुन: दो प्रकार की किस्‍में होती हैं ।

1 वतद मज़मुआ 2 वतद मफ़रूफ़ 

वतद मज़मुआ जब तीन मात्राओं को इस प्रकार से मिलाकर एक ज़ुज़ बनाया जा रहा हो कि प्रारंभ की दो मात्राएं तो मुतहर्रिक हों तथा तीसरी मात्रा साकिन हो रही हो । तीन लघु को इस प्रकार से मिलाया जाये कि पहला लघु बिल्‍कुल स्‍वतंत्र हो दूसरा भी स्‍वतंत्र हो और तीसरा दूसरे में समा कर सायलेंट हो रहा हो । और कुछ 12 इस प्रकार का जुज़ बन रहा हो तब इसको हम कहते हैं कि ये वतद मज़मुआ है । उदाहरण आप बताएं ।

वतद मफ़रूफ़ जब तीन मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जाता है कि पहली मात्रा स्‍वतंत्र हो दूसरी वाली पहली में समा कर सायलेंट हो रही हो तथा तीसरी पुन: स्‍वतंत्र हो तो उसको कहा जात है कि ये वतद मज़मुआ है । और कुछ 21 इस प्रकार से जुज़ बनता है । उदाहरण आप बताएं ।

3 फासला ( चार तथा पांच मात्रिक व्‍यवस्‍था )

जब चार या पांच मात्राओं को मिलाकर एक जुज़ बनाया जा रहा हो तो उसे फासला कहा जाता है । इसकी भी दो किस्‍में हैं ।

1 फासला ए सुगरा 2 फासला ए कुवरा

1 फासला ए सुगरा  जब चार मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जा रहा हो कि प्रारंभ की तीन मात्राएं मुतहर्रिक हों तथा चौथी सकिन हो रही हो तो उसको हम फासला ए सुगरा कहते हैं । 112 के उदाहरण आप बताएं ।

2 फासला ए कुवरा  जब पांच मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जा रहा हो कि प्रारंभ के चार मुत‍हर्रिक हों तथा पांचवी साकिन हो रही हो तो उसको फासला ए कुवरा कहा जाता है । 1112 के उदाहरण आप बताएं ।

तो इस प्रकार से ये सारे के सारे जुज़ होते हैं । जुज़ का मतलब है कि मात्राओं की निश्चित व्‍यवस्‍था । जुज़ को यदि हम जान गये तो बहर को जानना इसलिये आसान हो जाता है कि हम ने सबसे छोटी इकाई को जान लिया । इन जुज़ों से ही बनेंगें रुक्‍न जिनको बनाना हम अगले अंक में सीखेंगें । रुक्‍नों में मात्राओं की कम बढ़ करना सीखना हो तो पहले जुज़ को तो जानना ही होगा ।

सारे उदाहरण टिप्‍पणी में द‍ीजिये । कुछ विस्‍तार से चर्चा करेंगें तो समझ में आयेगा । कृपया बहुत अच्‍छा लिखा, नाइस, अच्‍छा है जैसे कमेंट करने से बेहतर है कि कमेंट ना ही करें ।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

कहां से आयी ये ध्‍वनियां , जिनसे कि हमारी कविता बनी । कविता जिसका मतलब गीत भी है ग़ज़ल भी है, छंद भी है और वो सब कुछ है जिसको गाया जा सकता है ।

कई बार हम सब के मन में आता है कि अक्षर कहां से बना और यदि अक्षर बना तो फिर शब्‍द कैसे बने । फिर ये भी कि शब्‍द बनाने के लिये क्‍या तकनीक का उपयोग किया गया । या अक्षर बनाने के पीछे किस प्रकार की तकनीक का उपयोग किया गया । ये प्रश्‍न ऐसे हैं जिनका कोई ठीक उत्‍तर नहीं तलाशा जा सकता है । यदि हम भारतीय श्रुतियों की बात करें तो यहां पर शब्‍द की सत्‍ता को हमेशा ही सर्वोपरि माना गया है । शब्‍द को ब्रह्म का दर्जा भी दिया गया है । यदि शब्‍द की सत्‍ता सबसे ऊपर है तो फिर ये शब्‍द ये अक्षर आये कहां से । श्रुतियां कहती हैं कि शिव के डमरू से ही सारे अक्षरों की उत्‍पत्ति हुई है । मान्‍यता को ही यदि माना जाए तो शिव के डमरू से तांडव के दौरान हमारी वर्णमाला की रचना हुई । इन दिनों हिंदी को लेकर कई सारी बातें हो रही हैं । कई सारी बाते अर्थात हिंदी बची भी रहेगी या नहीं । क्‍या अंग्रेजी इसको समाप्‍त कर देगी । वगैरह वगैरह । संस्‍कृत जिसको कि आदि भाषा कहा जाता है तथा जिससे हमारे उपमहाद्वीप की सारी भाषाएं बनी हैं, वह मेरे विचार से इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं है । संस्‍कृत का नाम इसलिये  ले रहा हूं कि भले ही वो प्रारंभिक दौर की हिंदवी हो, हिंदी हो, उर्दू हो इन सबका जन्‍म संस्‍कृत की ही कोख से हुआ है । और हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसके पास मुंह से निकलने पाले हर स्‍वर के लिये कोई न कोई शब्‍द है अन्‍यथा तो दुनिया की कई सारी भाषाओं के पा टठडढ है ही नहीं । हिंदी में जो लिखा जाता है वही उच्‍चारण भी किया जाता है । अंग्रेजी में तो जैसा जार्ज बर्नाड शा ने कहा था कि ये इतनी ग़रीब है कि उसमें GHOTI को चाहें तो फिश भी कह सकते हैं । क्‍योंकि GH से कफ में बन जाता है O से वीमन में बनती है और TI से नेशन में श बनता है तो आप इसको फिश भी कह सकते हैं । ये मेरा नहीं जार्ज बर्नाड शा का कथन है अंग्रेजी के सबसे बड़े विद्वान का ।

खैर तो बात हो रही थी कि कहां से आए स्‍वर और कहां से बनी मात्राएं । जब काव्‍य आया तो उसके साथ ही आईं मात्राएं । क्‍योंकि काव्‍य को नापने के लिये कोई तो पैमाना होना ही चाहिये था । तो बस हुआ ये कि लघु और दीर्घ के रूप में मात्राएं बनाई गईं । मात्राएं अर्थात वजन । हिंदी के छंदों में तो खैर अलग तरीके से मात्राओं को गिना जाता था लेकिन जब अरबी और फारसी का काव्‍य शास्‍त्र जन्‍मा तो उसमें मात्राओं को गिनने का तरीका अलग किया गया । कहते हैं कि किसी लोहपीटे द्वारा लोहे को पीटे जाने के स्‍वर को सुनकर खलील बिन अहमद के दिमाग में मात्राओं का जन्‍म हुआ । या यूं कहें कि नाद में होने वाले वज़न का पहले पहल खयाल आया । मूल रूप से शिक्षक अल खलील बिन एहमद अल फरहीदी  ने जब नाद को सुना तो उनके दिमाग़ में लय ने जन्‍म लिया । कितना साम्‍य है कि हम भी वही कहते हैं कि शिव के डमरू से होने वाले नाद से मात्राओं  ने जन्‍म लिया और लगभग यही बात अरबी फारसी में भी है । खैर तो बसरा के शिक्षक ने जब लोहापीटे द्वारा लोहे को पीटे जाने की ध्‍वनि सुनी तो उसमें से होने वाली मात्राओं की तरफ उनका ध्‍यान गया । आपने कभी लोहा पीटे द्वारा लोहे पीटने की ध्‍वनि सुनी हो या नहीं है । नहीं सुनी हो तो एक बार सुनियेगा ज़रूर । उसमें जोरदार प्रहार की आवाज़ के ठीक पीछे एक छोटी सी आवाज़ होती है । बस उसी को सुनकर लाम ( लघु ) और गाफ़ ( दीर्घ) की परिकल्‍पना की खलील बिन अहमद ने । मैंने कई बार लोहापीटों के पास बैठकर काम करवाया है । उनके काम में एक अजीब सा लास्‍य होता है । एक अजीब सी लय जो अपने आप में संगीत होती है । आगे जब भी मौका मिले तो लोहे को कोई काम करवाने स्‍वयं जाएं और मेहसूस करें उस अनुभव को जिसे अरबी फारसी के काव्‍य के जन्‍मदाता खलील बिन अहमद ने मेहसूस किया था ।

लाम और गाफ़  इन दोनों मात्राओं के जन्‍म लेने के बाद जो ज़रूरी था वो ये था कि इनको अब एक तरतीब दी जाए । एक निश्चित क्रम दिया जाये ताकि कविता का भी एक तय विन्‍यास हो सके । हिंदी काव्‍य शास्‍त्र तथा रोमन काव्‍य शास्‍त्र के बहुत अच्‍छे ज्ञाता खलील बिन अहमद को ये पता था कि हिंदी की तरह मात्रा विन्‍यास यहां नहीं चल सकता क्‍योंकि यहां पर संयुक्‍त अक्षरों का खेल होता है । सो उन्‍होंने सब कुछ नये तरीके से किया । उन्‍होंने ही इन मात्राओं का विन्‍यास बनाया और फिर उनका क्रम निर्धारित किया । उच्‍चारण का तरीका बनाया और उन्‍होंने ही प्रारंभ की पन्‍द्रह बहरों को बनाया । बाद में चार और बहरें दूसरे विद्वानों ने बनाई और इस प्रकार कुल मिलाकर उन्‍नीस बहरें हों गईं । उन्‍नीस बहरें अर्थात स्‍थाई बहरें या सालिम बहरें । मुजाहिफ बहरें तो कई हैं । उन्‍होंने गाफ या दीर्घ मात्राओं के दायरे में उन दो लघु मात्राओं को भी ले लिया जिनमें कोई एक दूसरे में समा रही हो । जैसे हम, तुम, कब, अब ।  ये एक नया तरीका हुआ मात्राओं को गिनने का । यहां पर गिनने के बजाय उनके वजन से काम लिया गया । बात वही कि लोहापीटे द्वारा लोहे को पीटे जाने में कोई बात नहीं थी बस नाद का वजन था । लाम 1 लघु, गाफ़ 2 दीर्घ  

जुज़ -  जब मात्राओं का जन्‍म हो गया तो उसके बाद अब बारी थी मात्राओं के विन्‍यास बनाने की । मात्राओं के विन्‍यास का मतलब जुज़ बनाने की । मात्राओ के गुच्‍छे बनाने की ताकि उनसे फिर कुछ तय तरतीब बना दी जाएं  । कुल मिलाकर ये कि शेरों से ग़ज़ल बनती है, मिसरों से शेर बनते हैं, रुक्‍नों से मिसरे बनते हैं तो फिर रुक्‍न बनाने में किस प्रकार की तकनीक का उपयोग किया गया । ये कि ये रुक्‍नों के संगठन में मात्राओं का कौन सा क्रम तय किया गया । रुक्‍नों का संगठन क्‍या होता है । तो मात्राओं का वो विन्‍यास  जिससे रुक्‍न बनाये गये उसको जुज़  या अजज़ा  कहा गया । अजज़ा से चकराइये मत दरअसल में एकवचन-बहुवचन का खेल है जैसे शेर-अशआर, रुक्‍न-अरकान, जुज़-अजज़ा । तो ये रुक्‍न जो कि बनाये गये ये कुल तीन प्रकार के बनाये गये । या यूं कहें कि मात्राओं का कुल तीन प्रकार का विन्‍यास किया गया ।

1-सबब 2-वतद 3-फासला इन्‍हीं तीनों से बन गई सारी बहरें वो सब कुछ जो हम करते हैं मसलन फाएलातुन, फाएलुन वगैरह वगैरह । मगर वहां तक तो पहुंचने में हमें अभी समय है अभी तो हम बात कर रहे हैं जुज़बंदी की । तो अगले अंक में जानते हैं कि ये जुज़ ( वोडाफोन वाले जूजू नहीं )  कितने होते हैं और उनके भी कितने प्रकार होते हैं ।

कोशिश की जाएगी कि एक माह में कम से कम दो पोस्‍ट लगें । लेकिन व्‍यस्‍तता के कारण पिछले माह एक ही लग पाई । आगे से ऐसा न हो इस बार का ध्‍यान रखा जाएगा ।

सारांश - मिट्टी, मिट्टी से ईंट, ईंटों से कतारें, कतारों से दीवार, दीवारों से कमरा, कमरों से मकान,

               मात्रा, मात्राओं से जुज़, जुज़ से रुक्‍न, रुक्‍नों से मिसरे, मिसरों से शेर और शेरों से ग़ज़ल

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

ग़ज़ल का सफ़र, सफ़र उन तमाम रास्‍तों का, जिन से होकर ग़ज़ल का कारवां गुज़रता है । सफ़र जो तय होगा तकनीक के स‍हारे । तो चलिये बिस्मिल्‍लाह कह के श्रीगणेश करते हैं ग़ज़ल के सफ़र का ।

सनद रहे कि आज ठीक एक जनवरी 2010 को प्रारंभ हो रहा है ये ग़ज़ल का सफ़र । कारवां छोटा होगा किन्‍तु गुणीजनों से भरपूर होगा । कुछ सीखने के लिये और कुछ सिखाने के लिये है ये ग़ज़ल का सफ़र । आइये करते हैं शुरूआत डॉ. आज़म जी के इस शेर के साथ-

फ़लक तू वुसअ़तें अपनी बढ़ा ले

मुझे उड़ने की ख्‍़वाहिश हो रही है 

( वुसअ़त : विस्‍तार, फैलाव )

वैसे तो इस बात को लेकर कई सारी बातें हैं कि ग़ज़ल का सफ़र ठीक कब से प्रारंभ हुआ । कई सारी तारीखें आती हैं कई सारे नाम आते हैं । फिर भी एक बात तो तय है कि ग़ज़ल का व्‍याकरण बनाते समय कई सारे पिंगल शास्‍त्रों पर काम किया गया और उन सबसे से प्रेरणा लेकर तैयार किया गया गज़ल का व्‍याकरण । जिसका अरूज़ कहा गया । और इस ज्ञान को कहा गया इल्‍मे अरूज़ । यूं तो हिंदी का पिंगल शास्‍त्र विश्‍व का सबसे पुराना काव्‍य व्‍याकरण है । उसको भी हम हिंदी का न कह कर यदि संस्‍कृत का व्‍याकरण कहें तो ज्‍यादा ठीक रहेगा । तो उसी संस्‍कृत के व्‍याकरण को आधार बना कर की गई है बहरों की रचना । और उसी कारण ये होता है कि कई सारी बहरें सुनते समय कई विशिष्‍ट छंदों का आभास देती हैं । कहा ये भी जाता है कि छंदों का भारतीय तरीका, यूनानी तरीके से बहुत मिलता है । उसके पीछे भी कारण यही है कि वास्‍तव में आर्य भाषा संस्‍कृत ने ही विश्‍व में काव्‍य का जन्‍म दिया और फिर बाद में इसी संस्‍कृत के काव्‍य शास्‍त्र से विश्‍व भर के काव्‍य शास्‍त्रों ने प्रेरणा ली । शब्‍दों के उपयोग के तीन तरीकों को आधार बना कर ही तीन प्रकार के वेदों की रचना की गई । ऋगवेद, यजुर्वेद और सामवेद । शब्‍दों को प्रयोग करने की तीन शैलियां हैं पद्य, गद्य और गान । पद्य का अर्थ जिसमें मात्राओं की निश्चित संख्‍या तथा विराम और चरण हों । इस प्रकार की शब्‍द रचना को ऋक् कहा गया और विश्‍व की सबसे प्राचीन पुस्‍तक इसी प्रकार की देवताओं के आह्वान करने की ऋचाओं से बनी है । और उसी से जन्‍म लेता है विश्‍व का सबसे पुराना काव्‍य शास्‍त्र । जब छंद के नियम का पालन नहीं किया जाता तथा मात्रओं की निचित संख्‍या , पाद तथा चरण नहीं होते तब हम कहते हैं कि गद्य है उसे ही कहा गया यजु: अर्थात गद्यात्‍मक मंत्र । और इन ही यजु: से बना यजूर्वेद, जिसमें यज्ञ की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है । शब्‍दो उपयोग की तीसरी शैली है गाना या जिसे हम गान कह सकते हैं । गाये जा सकने वाले मंत्रो का नाम हुआ साम और गाये जा सकने वाले मंत्रों का संग्रह हुआ सामवेद, जिसमें कि यज्ञ के दौरान गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह किया गया है । वेद मंत्रों के बारे में कहा जाता है कि यदि आपके मुंह का एक भी दांत टूट गया तो फिर आप वेद मंत्रों का ठीक उच्‍चारण नहीं कर सकते । कुछ न कुछ दोष आ ही जाएगा । क्‍योंकि ये सारे मंत्र ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित हैं ।
हिंदी का छंद मूलत: संस्‍कृत के ही छंद से बना है । और इसका नाम पिंगल इसलिये हुआ क्‍योंकि पिंगल ऋषि ने ईसा पूर्व काव्‍य शास्‍त्र तथा छंद शास्‍त्र पर कार्य कर उसे एक स्‍वरूप प्रदान किया । अरबी फारसी का अरूज़ ईसा के पश्‍चात का है । और पिंगल शास्‍त्र की रचना अरबी फारसी के काव्‍य व्‍याकरण बनने से काफी पहले की है । बहर तथा अरूज़ के जन्‍मदाता बसरा के अल ख़लील बिन अहमद अल फरीदी थे ये करीब 1300 साल पहले सन 786 में हुए थे । माना जाता है कि ख़लील बिन अहमद को संस्‍कृत छंद तथा यूनानी छंदों का अच्‍छा ज्ञान था । तथा इन्‍हीं दोनों के सहयोग से उन्‍होंने अरबी फारसी काव्‍य का व्‍याकरण बनाया जिसको कि अरूज़ कहा गया । इन्‍होंने मात्राओं के कई सारे विन्‍यास बनाये तथा उन विन्‍यासों की विभिन्‍न तरतीबें बनाईं और फिर उन तरतीबों से निश्चित वज़न के वाक्‍य बनाये और एक निश्चित वज़न को एक बहर का नाम दे दिया । कुल 19 बहरे हैं जिनमें से 15 बहरें ख़लील बिन अहमद साहब की ही बनाई हुई हैं । वेद मंत्रों की ही तरह बहरें भी ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित हैं ।जो मात्राओं के विन्‍यास बनाए गये तथा जिनको लेकर काम किया गया वे ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित थे । उच्‍चारण का महत्‍व जो वेदों में था वही बहरों में भी है । वहां भी ग़लत उच्‍चारण से सब कुछ उलट जाता था और यहां पर भी वही हो जाता है ।
खैर ये तो केवल इसलिये कि आज शुरूआत है हमारे सफ़र की । ये नया ब्‍लाग आज से प्रारंभ हो रहा है । आप सब इसके हमसफ़र बन कर चलते रहेंगें । ऐसी उम्‍मीद है । यहां पर ग़ज़ल की तकनीकी जानकारी ही उपलब्‍ध करवाई जायेगी । यहां पर कुछ भी और नहीं होगा । जो कि पहले ही बताया जा चुका है कि ये केवल आमंत्रण से पढ़ा जाने वाला ब्‍लाग होगा । प्रारंभ में जो लोग जोड़ दिये जाएंगें वे यदि निष्क्रिय रहते हैं तो उनको हटा भी दिया जाएगा । ये ब्‍लाग प्रारंभ ही इसलिये किया जा रहा है कि सब भागीदारी दें । नहीं तो उस पहले वाले  ब्‍लाग पर सीखने तो ढेर सारे लोग आते हैं लेकिन कमेंट करने में इसलिये शरमाते हैं कि उससे लोगों को ये पता लग जाएगा कि ये भी सीखने आते हैं । उनमें वर्तमान के मंचों के एक बड़े शायर और दो मंचीय शीर्ष कवि भी हैं । जो आते बराबर हैं लेकिन आज तक कभी कमेंट करके नहीं गये । ऐसे लोगों से बचने के लिये ही है ये ब्‍लाग । ये उनके लिये है जो अपने हैं । नव वर्ष आप सबकों शुभ हो ।