शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

बुहत दिनों के बाद यहां पर कोई नई पोस्‍ट लग रही है । इस बीच में काफी कुछ हो गया है । शिवना प्रकाशन का यादगार मुशायरा और सिद्धार्थनगर का यादगार कवि सम्‍मेलन । खैर आज वहां से शुरू करते हैं जहां पर बात को छोड़ा था ।

ग़ज़ल का सफ़र इसको लेकर जिस प्रकार से योजना बनाई थी उस प्रकार से काम तो नहीं हो पा रहा है । उसके पीछे कारण कई हैं लेकिन हां ये बात भी सही है कि यहां पर जिस प्रकार से काम होना चाहिये था उस प्रकार से हो नहीं पा रहा है ।( जिंदगी का दूसरा नाम परेशानियां है ) पहले सोचा था कि सप्‍ताह में एक पोस्‍ट लगाने का । लेकिन उसमें भी परेशानी आई तो फिर माह में एक पोस्‍ट पर बात आई । वो तो ठीक चला लेकिन पिछले कुछ दिनों से वो सिलसिला भी टूट गया । खैर अब जुलाई आ गई है । बहुत अच्‍छी बरसात के एक दो दौर हो चुके हैं तो आज कुछ आगे की ओर बढ़ते हैं ।

पिछले अंक में हमने देखा कि किस प्रकार के और कितने जुज होते हैं । हमने देखा कि सबब-ए-ख़फीफ़, सबब-ए-सक़ील, वतद मजमुआ, वतद मफ़रूफ़, फासला-ए-सुगरा, फासला-ए-कुबरा  ये जुज की कुछ कि़स्‍में हैं । पिछले अंक में हमने देखा था कि जुज का अर्थ होता है मात्राओं को विशिष्‍ट प्रकार से विन्‍यास । और इन विन्‍यासों को ही मिलाकर फिर हम आगे बनाएंगें रुक्‍न । यहां पर ये जानना भी ज़रूरी है कि रुक्‍न कुल मिलाकर आठ प्रकार के ही बनाए गए तथा उन आठ प्रकार के रुक्‍नों से ही बाकी के सारे रुक्‍न बनाये गये । आठ रुक्‍न ही असल रुक्‍न हैं बाकी तो इन रुक्‍नों से ही जन्‍म लिये हैं । खैर इन रुक्‍नों की बात तो हम बाद में करेंगे ही । आज तो बात करते हैं उन तरीकों की जिनसे कि रुकन बनाये गये हैं ।

रुक्‍न :- जैसा कि ऊपर कहा कि कुल मिलाकर आठ ही प्रकार के रुक्‍न हैं ।

खुमासी :- खुमासी रुक्‍न कहा जाता है पांच मात्रिक रुक्‍नों को । स्‍थायी आठ रुक्‍नों में से दो रुक्‍न खुमासी रुक्‍न हैं । जिनमें जुज को इस प्रकार से व्‍यवस्थित किया गया है कि मात्राओं का कुल जोड़ पांच ही आये । इस प्रकार के दो ही रुक्‍न हैं एक है  फऊलुन  और दूसरा फाएलुन  अर्थात 122  तथा 212  के मात्रिक विन्‍यास के रुक्‍न ।

फऊलुन :-  इस रुक्‍न को यदि तोड़ कर देखा जाये तो इसका विन्‍यास कुछ यूं बनेगा 12+2=122 अर्थात एक जुज हमको लेना है 12  विन्‍यास के साथ और एक जुज लेना है 2 विन्‍यास के साथ । हमने पिछले अंक में देखा था कि 12 विन्‍यास का अर्थ है कि पहली दो मात्राएं स्‍वतंत्र हों और तीसरी संयुक्‍त हो तथा इसका नाम हमने दिया था वतद मजमुआ । वतद मजमुआ के उदाहरण में सनम, कहीं, कहां, तुम्‍हें आदि हैं । इसके अलावा 2 विन्‍यास में हमने देखा था कि पहली मात्रा स्‍वतंत्र और दूसरी संयुक्‍त का उदा‍हरण था सबब-ए-ख़फ़ीफ़ । तो इसका मतलब ये हुआ कि यदि हमको पांच मात्रिक फऊलुन रुक्‍न बनाना हो तो दो प्रकार के जुज उठाकर उनकी जुजबंदी करनी होगी । वतद मजमुआ + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ = फ़ऊलुन ( बहरे मुतक़ारिब का स्‍थायी रुक्‍न । ) तो इस प्रकार से हमने आठ स्‍थायी रुक्‍नों में से पहला पांच मात्रिक रुक्‍न बना लिया जिसका विन्‍यास हुआ फ़ऊल़न । उदाहरण :- कहीं पर, तुम्‍हारे, हमारे, इधर हम, उधर तुम, सनम ने, क़सम से ।

फाएलुन :- ये पांच मात्रिक रुक्‍न का दूसरा और अंतिम स्‍थायी रुक्‍न है । याद रखें की बात केवल स्‍थायी रुक्‍नों की चल रही है । तो जो दो पांच मात्रिक रुक्‍न हैं वे हैं फ़ऊलुन तथा फ़ाएलुन उनमें से दूसरे का विन्‍यास देखते हैं । पहले वाले का उल्‍टा विन्‍यास है ये । 21+2=212 इसका मतलब ये हुआ कि हमको जो जुज लेने हैं उनमें एक तो पिछला वाला ही है सबब-ए-ख़फ़ीफ़ जिसका विन्‍यास है 2 प‍हली मात्रा स्‍वतंत्र दूसरी संयुक्‍त । अब जो दूसरा जुज हमको चाहिये वो है 21  अर्थात पिछले का उल्‍टा । तो हमने पिछले अंक में देखा था कि तीन मात्रिक जुज में जब पहली मात्रा स्‍वतंत्र हो दूसरी संयुक्‍त हो और तीसरी फिर स्‍वतंत्र हो तो उस व्‍यवस्‍था को वतद मफ़रूफ़ कहा गया था । वतद मफरूफ के उदाहरण में  आप, शहृर, गांव जैसे शब्‍द आते हैं । तो कुल मिलाकर नतीज़ा ये निकला कि हमने कुछ इस प्रकार से जुज़बंदी की वतद मफ़रूफ़ + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ = फ़ाएलुन इस प्रकार से हमने पांच मात्रिक विन्‍यास का दूसरा तथा अंतिम रुक्‍न फ़ाएलुन ( बहरे मुतदारिक का स्‍थायी रुक्‍न ) बना लिया । उदाहरण : आदमी, जिंदगी, ग़म न कर, रात भर, हम कहां ।

तो इस प्रकार से होती है दो बहरों के स्‍थायी रुक्‍नों की उत्‍पत्ति । ये दोनों ही मुफ़रद बहरें हैं ।  मुतदारिक तथा मुतकारिब । और दोनों ही पांच मात्रिक रुक्‍नों से मिलकर बनी हैं । अब बचते हैं बाकी के 6 रुक्‍न । उनकी जुजबंदी इसलिये मुश्किल है थोड़ी सी कि वे सारे के सारे ही सात मात्रिक हैं । उनमें से पांच रुक्‍नों पर तो बाक़ायदा मुफ़रद बहरें भी हैं । एक रुक्‍न है जिस पर कोई मुफ़रद बहर नहीं है । ये तो आपको पता ही होगा कि कुल मिलाकर सात ही मुफ़रद बहरें  हैं । तो आज उन सात में से दो बहरों के रुक्‍नों का निर्माण हमने कर लिया है । अगले अंक में ( जो जल्‍द ही लाने का प्रयास किया जायेगा इंशाअल्‍लाह । इतनी देर नहीं लगेगी । ) हम बाकी के 6 रुक्‍नों का निर्माण करेंगें ।

( मुफ़रद बहरें :- जो कि एक ही प्रकार के रुक्‍नों के संयोग से बनती हैं । )

क्षमा चाहता हूं कि समय के अभाव के कारण प्रश्‍नोत्‍तर का सिलसिला यहां पर नहीं चला सकता हूं । क्‍योंकि जब पोस्‍ट लगाने के लिये ही समय निकालना पड़ रहा हो तो उसके लिये और मुश्किल होगा । एक निवेदन है यदि कमेंट में कोई प्रश्‍न आता है और आपको लगता है कि उसका उत्‍तर आपके पास है तो उसे कमेंट के माध्‍यम से दे दें । ताकि प्रश्‍न का समाधान हो जाये और मेरा भी काम आसान हो जाये ।

12 टिप्‍पणियां:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

जी गुरु जी, बहुत सही जा रहे हैं हम और पाठ का आनंद भी आ रहा है. खुमासी तो बहुत आसान हो गया.

मुफरद बहरे भी साफ़ है और इसके चार बार पुनरावृति को सालिम वजन कहते हैं (ठीक है न) क्या सालिम का गुणक जोड़े शब्दों से है? जैसे २,४,६,८ इत्यादि या सिर्फ ४ से. मेरे ख्याल से मैं आगेकी बात कह रहा हूँ, फिलहाल रुक्नो पर ही ठहरना चाहिए.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया पाठ रहा. इस बार गैप बहुत ज्यादा हो गया. :) मगर यह गैप इतनी सफलता से भरा रहा: मसलन मुशयरा, कवि सम्मेलन कि बिल्कुल नहीं अखरा.

अर्चना तिवारी ने कहा…

गुरु जी प्रणाम...पाठ अच्छा लगा..बहुत दिनों से प्रतीक्षा में थे हम लोग

निर्मला कपिला ने कहा…

gगज़ल का सफर पर तो आपको मै गुरूजी ही कहूँगी चाहे आप गुस्सा ही करें। जब यहाँ से ही सब कुछ सीख रही हूँ तो यही मेरा स्कूल है और इस स्कूल के अध्यापक गुरू हैं । बाकी जगह मेरे छोटे भाई हैं। अब मुझे समझ आने लगा है। इस से पहले कुछ पता नही था। बहुत बहुत धन्यवाद और नमन गुरूदेव को।

Rajeev Bharol ने कहा…

गुरूजी,
प्रणाम.

हमें आपकी व्यस्तता का आभास है. इस पोस्ट के लिए इंतज़ार करना पड़ा, लेकिन इंतज़ार का फल मीठा होता है. रुक्न और जुज़ अब समझ आना शुरू हो गए हैं.

धन्यवाद.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

गम-ऐ-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक

हमें तो सिर्फ इसी जुज़ के बारे में ही सुना था...अब आपने तो जुज़ की कई
किस्में बता दी हैं...

ये तो हुई थोड़ी सी हलकी फुलकी बात लेकिन सच तो ये है के आपका ये ब्लॉग ग़ज़ल
प्रेमियों के लिए मक्का से कम नहीं है...ये एक अभूत पूर्व प्रयास है जिसकी आज
नहीं तो कल सर्वत्र चर्चा होगी और नए पुराने ग़ज़ल लेखकों के लिए लेखन का मार्ग
प्रशश्त करेगी. इस निस्वार्थ किये गए कार्य के लिए आपकी जितनी प्रशंशा की जाए
कम है.
नीरज

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जैसे की नीरज जी ने कहा है .... सच में ये ग़ज़ल का मक्का है ... धीरे धीरे बारीक़ियाँ आसान होती जा रही हैं ...

Devi Nangrani ने कहा…

Is karyshala mein ham sabhi shagird hai, Guruji kahan hi ucchit hai. Nayi baatein roshini mein aa rahi hai. jaakari, v baarekiaan nihayat hi kargar hain.

वीनस केसरी ने कहा…

गुरु जी प्रणाम,

यह पाठ तो बहुत आसान साबित हुआ :)
एक बार पढ़ कर समझ आ गया :)

खुमासी - एक नए शब्द से परिचय हुआ

बस एक बात पढ़ कर दिमाग गोल गोल घूमने लगा कि आप मुफरद के सालिम रुक्नों के बारे में बता रहे हैं जो सात हैं


१- रजज २२१२
२- हजज १२२२
३- रमल २१२२
४- कामिल २२२१
५- वाफ़र १२१२
६- मुतदारिक २१२
७- मुतकारिब १२२

तो फिर ६ और ७ नंबर के बारे में बता चुकने के बार अब ६ मुफरद सालिम कैसे बचे ?

एक बात और है जो उलझा रही है ...

आपने कहा है कि बाकी के सारे रुक्न सात मात्रिक हैं जबकि वाफर का रुक्न तो १२१२ है तो ये तो ६ मात्रिक हुआ?
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गुरु जी मेरी बेवकूफी को माफ करें
अभी फिर से ध्यान से पढ़ने पर मैं आपकी इस बात पर भी उलझ गया हूँ .....

"""उनमें से पांच रुक्नों पर तो बाक़ायदा मुफ़रद बहरें भी हैं । एक रुक्न है जिस पर कोई मुफ़रद बहर नहीं है । ये तो आपको पता ही होगा कि कुल मिलाकर सात ही मुफ़रद बहरें हैं ।"""

लाख कोशिश के बाद भी मैं समझ नहीं पा रहा ही वो कौन सा मुफरद रुक्न है जिसकी मुफरद सालिम बहर नहीं है, कहीं आपका आशय मुफरद मुजाहिफ से तो नहीं है ?

क्षमा करें प्रश्नोत्तर के लिए मना होने के बाद भी कई सवाल पूछ बैठा

आपका वीनस

गौतम राजऋषि ने कहा…

आज फिर से पाठ दुहराने आया तो देखा कि मेरी टिप्पणी तो नदारद है यहाँ से। नये पोस्ट पे जाने से पहले इस पोस्ट को देखना जरूरी था।

वाफ़र को लेकर मेरी भी उलझन थी जो वीनस उठा रहा है।

खुमासी बड़ा भाया...और अब जा रहा हूँ नये सबक पर।

"अर्श" ने कहा…

खुमासी के मात्रा विन्यास को समझ गया .. छोटी बह'र पर लिखने वालों के लिए ज्यादा समझपाने वाली बात है .... वाफ़र वाकई बेहद संजीदगी से लेने वाली बात है...
अर्श

Ankit ने कहा…

@ वीनस वाफर का रुक्न १२११२ है तो ज़रा जोड़ के बताओ कितना हुआ?
१+२+१+१+२ = ७, हुआ ना सात मात्रिक.
और कामिल का रुक्न ११२१२ होता है आपने २२२१ लिखा है जो मफउलातू है जिसपे कोई मुफरद बहर नहीं है और बाकियों पे है.

यानी हजज, रजज, रमल, मुतदारिक, मुतकारिब, वाफर, और कामिल पे मुफरद बहरें हैं.