शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ग़ज़ल का ध्‍वनि विज्ञान बहुत ही संतुलन का खेल है, इतना कि बहर के बारे में जानने वाला बारीक सी ग़लती को भी केवल कान से सुन कर ही पकड़ लेता है ।

ध्‍वनियां हमारे जीवन में इस प्रकार से भरी हैं कि उनके बिना हमारा काम ही नहीं चलता है । नाद ईश्‍वर के द्वारा दिया गया सबसे अनुपम उपहार है । नाद जो हम क्रमश: चार स्‍थानों से पैदा करते हैं । आम जन मुंह से बोलते हैं इस प्रकार का बोलना कोई प्रभावशाली नहीं होता है । फिर आता है कंठ से बोलना ये प्रभाव उत्‍पन्‍न करता है क्‍योंकि इसमें अधिक बाइब्रेशन होते हैं । फिर ह्रदय से बोला जाता है ये और अधिक बाइब्रेशन उत्‍पन्‍न करता है । चौथा नाद होता है जो सीधे नाभि से आता है । ये नाद सुनने वाले को सम्‍मोहित कर देता है । आपने कुमार गंधर्व साहब को सुना होगा वे नाभि से स्‍वर उत्‍पन्‍न करते थे । ओम के अभ्‍यास से हम अपने स्‍वर को क्रमश: मुंह से कंठ कंठ से ह्रदय और ह्रदय से नाभि में ले जा सकते हैं । हालांकि कंठ से ह्दय मुश्किल और ह्रदय से नाभि बहुत मुश्किल काम है । किन्‍तु अभ्‍यास से सब हो सकता है । ओम की में तीन ध्‍वनियां होती हैं इनमें सबसे अधिक बाइब्रेशन म में होते हैं । आप भी अभ्‍यास करें कभी ओम के साथ और कुछ दिनों के बाद ही आपको लगेगा कि आपके बाइब्रेशन आपके कंठ से नाभि तक दौड़ रहे हैं । कई बारे किसी के बोलने में कुछ ऐसा होता है कि सुनने वाले ठगे से रह जाते है़ । तो क्‍या होता है उसमें ऐसा कि लोग उसको इस प्रकार से सुनते हैं । दरअसल में ये वही बात है कि स्‍वर पूरे कंपन के साथ उत्‍पन्‍न हो रहा है ।

खैर हमने पिछले अंक  में बात की थी जुज़ की तो अपनी उस चर्चा को आज आगे बढ़ाते हैं । और आज बात करते हैं कुछ आगे की ।

ग़ज़ल के सबसे छोटे खंड की चर्चा हम लोग कर रहे हैं । ममलब कि रुकन से भी छोटी इकाइयों की बात हो रही है । हम बात कर रहे हैं जुज़ की । जिन टुकड़ों से रुक्‍न बनते हैं उनको जुज़ कहा जाता है ये हमने पिछले अंक में जाना था । आज हम ये देखते हैं मूल रूप से मात्राओं की कुल कितने प्रकार की व्‍यवस्‍थाएं की गई हैं । या यूं कहें कि कितने प्रकार के जुज बनाए गए हैं । पहले तो हम एक बार जान लें कि लघु और दीर्घ मात्राओं पर ही सारा खेल होता है जो कुछ भी बनाया जायेगा वो इनसे ही बनेगा ।

I लघु  S दीर्घ

मुख्‍य रूप से तीन प्रकार के जुज़ बनाये गये हैं । ये मात्राओं की संख्‍या के आधार पर बनाये गये हैं ।

1 सबब 2 वतद 3 फासला

जानने से पहले हम बात करें दो शब्‍दों की मुतहर्रिक और साकिन । दरअसल में जिन्‍होंने गणित पढ़ी होगी तो उन्‍होंने स्‍टेटिक और डायनामिक शब्‍द सुने होंगें । मैंने नहीं पढ़े क्‍योंकि मैंने गणित नहीं पढ़ी है ।ये दोंनों शब्‍द वहीं से आये हैं । दो हिंदी के शब्‍द होते हैं स्थिर और गतिशील । अंग्रेजी के भी दो शब्‍द हैं dominant and recessive ये भी लगभग वैसे ही शब्‍द हैं । हालांकि अर्थ में कुछ भिन्‍नता हो सकती है । dominant and recessive  ये शब्‍द आनुवांशिकी से आये हैं । हाइब्रिड या संकर नस्‍ल पैदा करते समय एक जीन के कैरेक्‍टर डामिनेंट हो जाते हैं और दूसरे के रेसेसिव रह जाते हैं । जो नयी प्रजाति बनती है उसमें ये प्रभाव साफ दिखाई देता है । यहां पर भी हम मात्राओं के संकर से नया स्‍वर पैदा कर रहे हैं । चूंकि संकर बना रहे हैं इसलिये किसी को डामिनेंट और किसी को रेसेसिव होना ही पड़ेगा । संकर शब्‍द जिनको समझ में नहीं आ रहा हो उनको बता दूं कि जब दो प्रजातियों का कृत्रिम रूप से मेल कर नयी प्रजाति बनाई जाती है तो उस नयी प्रजाति को संकर नस्‍ल कहा जाता है । गेहूं, सोयाबीन और तुवर की अधिक उत्‍पादन वाली काफी सारी संकर प्रजातियां हैं । एक बहुत अच्‍छा उदाहरण है बरसात में उगने वाली गुलमेंहदी । जिसमें कई तरह फूल होते हैं । तो हम भले ही मुतहर्रिक, डायनामिक, गतिशील, डामिनेंट कुछ भी कहें अर्थ लगभग एक ही है और उसी प्रकार चाहे साकिन, स्‍टेटिक, स्थिर, रेसेसिव, सायलेंट कुछ भी कह लें बात एक ही होगी । मतलब ये कि जब आप दो मात्राओं का संकर करके एक नया स्‍वर बना रहे हैं तो उन दोंनों मात्राओं में से कौन सी मुतहिर्रक (डामिनेंट ) रहेगी तथा कौन सी साकिन (रेसिसिव या सायलेंट) हो जायेगी बस ये ही छोटी सी बात है ।

आइये आज बात करते हैं पहले सबब की ।

1 सबब ( दो मात्रिक व्‍यवस्‍था )

दो मात्राओं वाली व्‍यवस्‍था को सबब कहा गया है । अर्थात जब किसी जुज़ को बनाने में कुल मिलाकर दो ही मात्राओं को उपयोग किया गया हो तो उसको सबब कहा जाता है । यह पुन: दो प्रकार का होता है ।

1 सबब ए खफ़ीफ़ 2 सबब ए सक़ील ( नाम से मत उलझियेगा दरअसल में ये अरबी फारसी के नाम हैं आप इनको यूं भी कह सकते हैं कि दो प्रकार की व्‍यवस्‍था है स्‍वतंत्र द्विमात्रिक और संयुक्‍त द्विमात्रिक ।)

 सबब ए ख़फ़ीफ़

वह दो मात्रिक व्‍यवस्‍था जिसमें पहली मात्रा मुतहर्रिक हो तथा दूसरी मात्रा साकिन हो गई हो उसको सबब ए ख़फ़ीफ़ कहा जाता है । इसको हम एक दीर्घ की तरह ही लेते हैं । दो लघु मात्राएं जिनको हम एक दीर्घ की तरह लेते हैं उनके उदाहरण आपको बताने हैं । यानि कि सबब ए ख़फ़ीफ़ के उदाहरण ।

सबब ए सक़ील

वह दो मात्रिक व्‍यसस्‍था जिसमें दोनों ही मात्राएं स्‍वतंत्र हों । अर्थात जब दो लघु मात्राएं इस प्रकार से मिल कर ज़ुज़ बना रही हों कि उन दोनों में से कोई भी सायलेंट नहीं हो रहा हो तो उस स्थिति में हम कहते हैं कि ये सबब ए सकी़ल है । ऊपर भी दो लघु मात्राएं थीं और यहां पर भी हैं बस अंतर इतना है कि ऊपर दो लघु में से एक पहली मुतहर्रिक थी दूसरी साकिन, यहां पर दोनों ही मुतहरर्कि हैं । उदाहरण आप बताएं ।

2 वतद ( तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था )

वतद तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था है । अर्थात इस प्रकार के जुज जिनमें तीन मात्राएं आ रही हों उनको वतद कहा जाता है । यहां पर भी पुन: दो प्रकार की किस्‍में होती हैं ।

1 वतद मज़मुआ 2 वतद मफ़रूफ़ 

वतद मज़मुआ जब तीन मात्राओं को इस प्रकार से मिलाकर एक ज़ुज़ बनाया जा रहा हो कि प्रारंभ की दो मात्राएं तो मुतहर्रिक हों तथा तीसरी मात्रा साकिन हो रही हो । तीन लघु को इस प्रकार से मिलाया जाये कि पहला लघु बिल्‍कुल स्‍वतंत्र हो दूसरा भी स्‍वतंत्र हो और तीसरा दूसरे में समा कर सायलेंट हो रहा हो । और कुछ 12 इस प्रकार का जुज़ बन रहा हो तब इसको हम कहते हैं कि ये वतद मज़मुआ है । उदाहरण आप बताएं ।

वतद मफ़रूफ़ जब तीन मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जाता है कि पहली मात्रा स्‍वतंत्र हो दूसरी वाली पहली में समा कर सायलेंट हो रही हो तथा तीसरी पुन: स्‍वतंत्र हो तो उसको कहा जात है कि ये वतद मज़मुआ है । और कुछ 21 इस प्रकार से जुज़ बनता है । उदाहरण आप बताएं ।

3 फासला ( चार तथा पांच मात्रिक व्‍यवस्‍था )

जब चार या पांच मात्राओं को मिलाकर एक जुज़ बनाया जा रहा हो तो उसे फासला कहा जाता है । इसकी भी दो किस्‍में हैं ।

1 फासला ए सुगरा 2 फासला ए कुवरा

1 फासला ए सुगरा  जब चार मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जा रहा हो कि प्रारंभ की तीन मात्राएं मुतहर्रिक हों तथा चौथी सकिन हो रही हो तो उसको हम फासला ए सुगरा कहते हैं । 112 के उदाहरण आप बताएं ।

2 फासला ए कुवरा  जब पांच मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जा रहा हो कि प्रारंभ के चार मुत‍हर्रिक हों तथा पांचवी साकिन हो रही हो तो उसको फासला ए कुवरा कहा जाता है । 1112 के उदाहरण आप बताएं ।

तो इस प्रकार से ये सारे के सारे जुज़ होते हैं । जुज़ का मतलब है कि मात्राओं की निश्चित व्‍यवस्‍था । जुज़ को यदि हम जान गये तो बहर को जानना इसलिये आसान हो जाता है कि हम ने सबसे छोटी इकाई को जान लिया । इन जुज़ों से ही बनेंगें रुक्‍न जिनको बनाना हम अगले अंक में सीखेंगें । रुक्‍नों में मात्राओं की कम बढ़ करना सीखना हो तो पहले जुज़ को तो जानना ही होगा ।

सारे उदाहरण टिप्‍पणी में द‍ीजिये । कुछ विस्‍तार से चर्चा करेंगें तो समझ में आयेगा । कृपया बहुत अच्‍छा लिखा, नाइस, अच्‍छा है जैसे कमेंट करने से बेहतर है कि कमेंट ना ही करें ।

42 टिप्‍पणियां:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

हालांकि अभी और मनन करने की जरुरत है मुझे. लेकिन पाठ सीखने में कमजोरी महसूस कर रहा हूँ.
जितना समझा उस आधार पर उदाहरण दे रहा हूँ...

1. सबब ए खफीफ़ - जा / कं
2. सबब ए सकील - नम / कर

3. वतद मजमुआ - मका
4. वतद मफरूफ़ - तीन
--
असल में मैं गाता नहीं हूँ. इसलिए मात्राओं को पकर नहीं पाता. वैसे गीत गाने की ख्वाहिश जरुर रखता हूँ.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

5. फासला ए सुगरा - जनम / करम

6. फासला ए कुवरा - गफ़लत / नफरत / इजहारे

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मुश्किल पाठ लग रहा है ....... सहपाठी क्या कह रहे हैं देखने के बाद दुबारा आता हूँ ...

वीनस केसरी ने कहा…

गुरु जी प्रणाम
३ बार पढ़ चुके
लगता है इक बार और पढ़ना पडेगा :)

प्रकाश पाखी ने कहा…

गुरुदेव,
आज की पोस्ट तो आध्यात्मिक अहसास दे रही है...शब्द और ध्वनियो की शक्ति के बारे में मैं मेरे आदरणीय गुरुदेव जिनसे मैंने आध्यात्मिक दीक्षा ले रखी है से कई बार विस्तार से चर्चा की है...वे शक्ति के उपासक है,उन्होंने काली को काल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में व्याख्यायित करते हुए एक बार मुझे बताया था कि देवी की बाहर निकली जिव्हा मुख से निकलने वाली शब्द शक्ति को अभिव्यक्त करती है.और गले में बावन नरमुंडो की माला वास्तव में १६ स्वर और ३६ व्यंजनों की प्रतीकात्मक अभिव्यंजना है...और शब्द से ही नाद और ब्रम्ह तक पहुंचा जा सकता है...गजल सीखना भी इतना सुखद होगा सोचा भी नहीं था...अपनी अंतर्निहित आध्यात्मिक सुन्दरता के कारण ही गजल लोगों के दिलों में उतर जाती है...वाह!
अब होमवर्क---जैसा भी समझ में आया लिख रहा हूँ...
सबब ए खफीफ -तन/झं 2
सबब ए सकील-शक/बक/11
वतद मजमुआ-सनम/कसर/12
वतद मफरूफ़-खुश्क/मंद/21
फासला ए सुगरा-हरपल/मतकर/112
फासला ए कुवरा-जनमपर/करमकर 1112

वीनस केसरी ने कहा…

गुरु जी प्रणाम
आज आपकी पोस्ट पढ़ कर लग रहा है महीनों के प्यासे को किसी ने कुँआ दिखा दिया हो
पोस्ट को बार बार पढ़ने से कुछ कुछ समझ में आ रहा है
जुज के तीन भाग
फिर तीनों के दो दो भाग कुल ६ तरह के जुज

सबब
१-सबब ए खलीफ
२- सबब ए सकील
वतद
१- वतद मजमुआ
२- वतद मफरूफ
फासला
१-फासला ए सुगरा
२- फासला ए कुवरा

वीनस केसरी ने कहा…

गुरु जी जितना समझ आया उससे उदाहरण दे रहा हूँ पता नहीं सही है या गंगा उल्टी बह गई :)
-----------------------------------
सबब
१-सबब ए खलीफ – १+१ =२

कुछ शब्द – हम, तुम, सब, रब

शेर-(अर्श भाई का)

इश्क मुहब्बत आवारापन
२२,२२,२२,२२
१+१ १+१, १+१ १+१ , २२, २ १+१

संग हुए जब छूटा बचपन
२२,२२,२२,२२
२ १+१ ,२ १+१, २२, १+१ १+१
----------------------------------------------------------------------
२- सबब ए सकील १+१ = १+१ (दो लघु स्वतंत्र)

श्याम जी की गजल का मत्ला –

जब हुनर उस,को खुदा ने, ये सिखाया, होगा
एक कतरे, में समन्दर, जा समाया, होगा

फ़ाइलातुन,फ़ इ लातुन,फ़ इ लातुन,फ़ेलुन
२१२२,११२२,११२२,२२

इक और है मगर उस पर शंका है

दिल की ये आ,रज़ू थी को,ई दिलरुबा, मिले
लो बन गया, नसीब के, तुम हम से आ, मिले
२२१२, १२११, २२१२, १२

देखें हमें, नसीब से, अब अपने क्या, मिले
२२१२, १२११, २२१२, १२
अब तक तो जो, भी दोस्त मि,ले बेवफा, मिले
२२१२, १२११, २२१२, १२
-----------------------------------
बाकी का भी उदाहरण खोजते हैं

वीनस केसरी ने कहा…

वतद
-----------------------------
१- वतद मजमुआ १+१+१ = १+२

कुछ शब्द – सनम, विजय, नगर, कुमुद, बहर, मगर, भजन सुखन

श्याम जी का इक शेर “तरह“ शब्द का उपयोग

यूं भला कब तक मेरा इम्तिहान लोगे तुम
इस तरह तो एक दिन मेरी जान लोगे तुम

दूसरे मिसरे का जुज = १+१ १ १+१ २, २ १ १+१ २, १२१२, २१+१

दूसरे मिसरे का रुक्न = २१२२, २१२२,१२१२,२२


सुखन शब्द का उदाहरण मेरा एक शेर –

मै कहा ले, जाउ अपनी, शायरी का, फन
पहले मिसरे का जुज २१२२, २११+१२, २१२२, २ = पहले मिसरे का रुक्न २१२२, २१२२, २१२२, २

तुम ही अपने, दर पे इक शा, मे सुखन रख, ना
दूसरे मिसरे का जुज २११+१२, १+१११+१२, २११+१ १+१ ,२ दूसरे मिसरे का रुक्न = २१२२,२१२२,२१२२,२
---------------------------------------------------------------------
२- वतद मफरूफ १+१+१ = २+१

कुछ शब्द – शह र, अस्ल, वक्त, भक्त , मुक्त, रुक्न आदि

वक्त शब्द का एक उदाहरण

जगजीत सिंह जी की गई एक गजल

वक्त ने किया क्या हसीं सितम
पहले मिसरे का जुज 1+१ १ २ १ २, १+१ १ २ १ १+१ = पहले मिसरे का रुक्न = २१२१२, २१२१२

तुम रहे न तुम हम रहे ना हम
दूसरे मिसरे का जुज १+१ १ २ १ १+१, १+१ १ २ १ १+१ दूसरे मिसरे का रुक्न = २१२१२, २१२१२

----------------------------------------------------------------------
हुर्रे :)
अब तो केवल फासला बचा :)

प्रकाश पाखी ने कहा…

वीनस भाई का होमवर्क शानदार है....:):):)

तिलक राज कपूर ने कहा…

हो सकता है मेरी अपेक्षा ग़ल़त हो लेकिन मैं अपेक्षा थी कि उदाहरण देते समय ब्‍लॉग पोस्‍ट http://subeerin.blogspot.com/2009/12/blog-post_22.html की याद उत्‍तर देने वालों को आयेग; नहीं आई।
बहरहाल:
उदाहरण में जुज़ ही दे देने से आगे रुक्‍न स्‍तर पर और आसान रहता बात समझना।
जुज़ प्रकार>मात्रिक क्रम >जुज़ उदाहरण
सबब ए ख़फ़ीफ़>दीर्घ (2)>लुन, ई, मुस्‍, ला
सबब ए सक़ील>लघु लघु (1,1)>तफ
वतद मज़मुआ>लघु, दीर्घ (1,2)>मुफा, एलुन, फऊ
वतद मफ़रूफ़ >दीर्घ, लघु (2,1)>फाए,लातु
फासला ए सुगरा >लघु, लघु, दीर्घ (1,1,2)>मुतफा, एलतुन
फासला ए कुवरा >लघु, लघु, लघु, दीर्घ (1,1,1,2)>फएलतुन

अर्चना तिवारी ने कहा…

गुरूजी प्रणाम
आज इतने दिनों बाद कक्षा में नई पोस्ट आई और संग में इतनी अधिक जानकारी मिली...कई बार पढ़ने पर मुझको जो समझ में आया उसके अनुसार गृहकार्य तैयार किया है वह इस प्रकार है....

१-सबब
१-सबब ए खफीफ़ - १+१=२ अब, जब, गुल , कम, कब
२-सबब ए सकील - १+१= १ १ कुछ, बुझ, सुख, मुझ,लिख

२-वतद
१-वतद मज़मुआ - १, १+१=२ यानि १ २ जहर, सफर, ग़ज़ल, मुड़के, तुझसे
२-वतद मफरूफ़ - १+१=२, १ यानि २ १ मुग्ध, शब्द, अश्क ,खुश्क

३-फासला
१-फासला ए सुगरा १ १ १+१=२ यानि १ १ २ छुटपन, बेहतर, शिकस्त,लिखकर, मुश्किल
२-फासला ए कुवरा १ १ १ १+१=२ यानि १ १ १ २ जनमदिन, सितमगर, पिघलकर, सुलगकर

pran sharma ने कहा…

EK SANGARNIY LEKH.NAYE YAA PURANE
GAZALKAR IS SE BAHUT KUCHH SEEKH
SAKTE HAIN.MUJHE BHEE BAHUT KUCHH
HAASIL HUAA HAI.SHRI SUBEER KEE
VIDWATAA KE AAGE NATMASTAK HOON.

pran sharma ने कहा…

EK SANGARNIY LEKH.NAYE AUR PURANE
GAZALKAR IS SE BAHUT KUCHH SEEKH
SAKTE HAIN.MUJHE BHEE BAHUT KUCHH
HAASIL HUAA HAI.SHRI SUBEER KEE
PRAKHAR LEKHNI KE AAGE NATMASTAK
HOON

वीनस केसरी ने कहा…

फासला का उदाहरण खोज पाना बहुत मुश्किल हो रहा है

अर्चना जी में जो उदाहरण दिए है उन पर ही कुछ खोजे की कोशीश करते हैं

@पाखी भाई मुझे तो जो समझ आया आगे देखा ना पीछे मैंने उदहारण में लिख मारा :)

अब गुरु जी ही बता सकते हैं लड्डू मिलेगा या अंडा :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

कक्षा लगी है
..चले आईये ...ग़ज़ल के महफ़िल सजी है चले आईये
ध्वनि के बारे में बहुत बारीकी से समझाया आपने ..कई बार पढूंगी
आपको शाबाशी दूं, बधाई दूं, या और क्या कहूं ? आशीर्वाद भी दे रही हूँ ..
आगे की क्लास का इंतज़ार रहेगा ..
यात्रा पे थी ....ये लिंक देखिएगा ...
http://www.lavanyashah.com/2010/04/blog-post.html
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या

निर्मला कपिला ने कहा…

अभी तक तो दिमाग से उपर हो कर निकल गया जल्दी मे पढा है समय मिलते ही पढती हूँ बहुत बहुत आशीर्वाद आजकल व्यस्त हूँ अपनी नयी नातिन मे।

निर्मला कपिला ने कहा…

ye sab aapake puraane shaagird hain subeer mujhe nahee lagataa ki mai gazal seekh paaoongee abhee itanaa samay bhee nahee mil paa rahaa. jis tarah kisee nalayak student kee haajaree lagatee hai meree bhee lagaate rahen vyastataa kam hote hee dhyaan se padhoongee. dhanyavaad shubhakamanayen

श्रद्धा जैन ने कहा…

Mujhe ye lekh dubara padhna hoga...
Ek baar mein to iske bhari naam dekh kar halat khraab ho gayi :-(

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

छोटी सी बुद्धि में जो आया वो ये है

सबब
सबब ए खफीफ - कं, जन्
सबब ए सक़ील - हम तुम गम

वतद
वतद मज़मुआ - वक्त, ज़ब्त
वतद मफरूफ - प्रेस, ज्वर,

फासला
फासला ए सुगरा - ममत्व, घनत्व
फासला ए कुवरा - अपनत्व,

अब सवाल ये है कि कंचन किस जुज़ के अतर्गत आता है। असल में गुरुकुल के विद्यार्थियों से ही जुज़ के उदाहरण ढूँढ़ रही थी तो रवि जी सबब ए सकील में, अर्श वतद मज़मुआ में फिट हो गये मगर कंचन, अंकित,वीनस और गौतम के लिये कोई शरणस्थली नही मिल रही।

RAVI KANT ने कहा…

जी, कंचन = मुतहर्रिक+साकिन+मुतहर्रिक+साकिन
=सबब खफ़ीफ़+सबब खफ़ीफ़= 22

फ़िर से आता हूं।

RAVI KANT ने कहा…

अंकित, वीनस और गौतम जी भी सबब खफ़ीफ़ दो बार।

RAVI KANT ने कहा…

गुरू जी,
प्रणाम। उदाहरण इस प्रकार हैं-

सबब ए खफ़ीफ़ = दिल, घर, जा
सबब सकील = कोई शुद्ध शब्द उदाहरण नहीं, केवल तरकीब की स्थिति में फासला में प्रयुक्त (ये शंका है, समाधान करें)

वतद ए मजमूआ = चमन, सफ़र
वतद ए मफ़रूक = कोई शुद्ध शब्द उदाहरण नहीं,केवल इज़ाफत की स्थिति में प्रयुक्त जैसे-दागे-दिल में दागे का वजन २१ लिया जा सकता है (ये शंका है समाधान अपेक्षित।)

फासला ए सुगरा = सबब सकील + सबब खफ़ीफ = गमला, चलना
फासला ए कुबरा = सबब सकील + वतद मजमूआ = नकलची

गौतम राजऋषि ने कहा…

दुबारा आया तो...सब गुरूभाईयों ने एक-से-एक उदाहरण देकर मेरा काम तो बिल्कुल ही आसान कर दिया है। एक-एक उदाहरण सब से टीप लूँ...बस हो गया काम... :-)

वीनस के दिये गये उदाहरण सबसे लाजवाब थे। वैसे एक टिप्पणी पढ़कर सोच रहा हूँ कि "वक्त ने किया क्या हसीं सितम" जगजीत ने गाया था कि गीता दत्त ने? :-)


अभी तक हम सोच रहे थे कि बहर तनिक लंबी-बड़ी सी चीज है तो नाम इतने मुश्किल है...यहां तो इनके छोटे के छोटे भाई जान के नामों की ये हालत है...हे भगवान...

इस पोस्ट पे अभी कई-कई बार आना पड़ेगा।

वीनस केसरी ने कहा…

गौतम जी "वक्त ने किया क्या हसीं सितम

मूल गीत को गीता दत्त ने ही गाया है
मगर मेरे पास एक सीडी है जिसमे जगजीत साहब ने कुछ फ़िल्मी गानों पर अपनी आवाज दी है

लिस्ट है -

02 Kahin Door Jab - Anand
03 Waqt Ne Kiya - Kaagaz Ke Phool
04 Yeh Nayan Dare Dare - Kohraa
05 Dukhi Man Mere - Funtoosh
06 Yaad Kiya Dil Ne - Patita
07 Seene Main Sulagta Hain - Tarana
08 Jane Woh Kaise Log The - Pyaasa
09 Teri Duniya Main Jeene - House No 44
10 Ek Pyara Ka Nagma Hai - Shor
11 Tasveer Banata Hoon - Baradari

सीडी है "क्लोज तू माई हार्ट" आपने तो सुने होंगे ना सुने हो तो गुजारिश है जरूर सुनें

मै जब भी सुनता हूँ मदहोश हो जाता हूँ
खास कर "कही दूर जब दिन ढल जाये "
(अभी भी सुन रहा हूँ :)

मेरे उदाहरण पसंद करने के लिए शुक्रिया :)

फासला ए सुगरा पर कुछ शेर उदाहरण मिल ही नहीं रहे खुद ही लिखने बैठ गया :)
२११२, २११२, २११२, २११२
जब पता चला बहुत कधीन है जल्द ही उठ भी गया ... हा हा हा

मगर कोशिश जारी है,,,हम हार नहीं मानेंगे एक मतला भी बन जाए तो यहाँ ठेल दें :)

वैसे श्याम जी की गजल इस भर पर पढ़ चुके है खोजा तो मिली ही नहीं

फासला ए कुबरा - बाप रे बाप

"अर्श" ने कहा…

गुरु देव को सादर प्रणाम,
पढ़ तो बहुत पहले लिया था , टिपण्णी के लिए हौसला जुटा भी लिया था मगर कमबख्त नेट ने एन समय पर चार बार धोखा दिया ..! खैर .. सभी ने कमाल के उदहारण दिए है,... बात को बिस्तार दूँ तो एक लाइन लिख रहा हूँ उसी पे कहूँगा ... अर्श तुम सब नगर छोड़ सकते !

तुम सबब ए खाफिफ का उदहारण है जिसमे तुम का तू , म के साथ संयुक्त होकर तुम बना रहा है जहां तू मुतहर्रिक है और म साकिन हो गयी है ..
इसमें सब सबब ए सकील हैं , इसमें दो मात्रिक ब्यवस्था है जिसमे दोनों ही लघु शब्द एक दुसरे से स्वतंत्र हैं , कोई भी सायलेंट नहीं हो रहा !
बात जब वतद मजमुआ की करें तो नगर को इसमें लेंगे जिसमे तिन मात्रिक ब्यवस्था है , जहां न ,ग दोनों स्वतंत्र हैं पर जो नगर का र है वो ग के साथ संयुक्त होकर गर बना रहा है !
बात वतद मफरूफ़ की हो रही है तो यह वो जुज़ है जहां तिन मात्रिक ब्यवस्था है जिसमे पहला और दूसरा शब्द एक दुसरे से संयुक्त हो रहे हैं जिसमे तीसरा शब्द इनदोनो से स्वतंत्र हो जाता है , यहाँ अर्श में यही है अर्श का अ और ऊपर रेप का र एक दुसरे में संयुक्त हो रहे हैं और फिर सायलेंट मगर श इन दोनों से स्वतंत्र है !या इसका दूसरा उदहारण छोड़ भी ले सकते हैं !
फासला चार मात्रिक व्यस्था है ..
सकते गणना के हिसाब से ये ११२ है जिसे फासला ए सुगरा जुज़ में रखा गया है इसमें प्रारंभ के तिन शब्द मुतहर्रिक हो जाते हैं और चौथा साकिन !
फासला ए कुवारा में पांच मात्रिक ब्यवस्था जो थोड़ा मुश्किल है ... हा हा हा हाँ इसका इस्तेमाल भी ग़ज़लों में ना के बराबर किया जाता है ! मगर जहाँ होता है जबरदस्त होता है ... नफरतें १११२..
इस बार की पोस्ट बार बार पढ़नी पड़ी और मन भी किया यहाँ आने को ...
जगजीत जी की क्लोज़ तो माय हार्ट ज्यादा पसंद नहीं आयी मगर हाँ इसके गीत ओरिजिनल ही अछे लगते हैं , जगजीत सिंह और गीता दत्त से थोड़ा अलग हो जाएँ तो इसे मुकेश की आवाज़ में और भी खूबसूरती बख्शी है .... उस अल्बम का एक और गीत तुम पुकार लो मेरा अल टाइम फेवरीट है ...


आपका
अर्श

प्रकाश पाखी ने कहा…

@तिलकराज साहब-शुक्रिया,पोस्ट याद दिलाने का.गुरुदेव की इस पोस्ट पर जुजबन्दी के बारें में बताया गया है...सबब ए सक़ील>लघु लघु (1,1)>तफ
सबब ए ख़फ़ीफ़>दीर्घ (2)>लुन, ई, मुस्‍, ला
वतद मज़मुआ>लघु, दीर्घ (1,2)>मुफा, एलुन, फऊ
वतद मफ़रूफ़ >दीर्घ, लघु (2,1)>फाए,लातु
फासला ए सुगरा >लघु, लघु, दीर्घ (1,1,2)>मुतफा, एलतुन
फासला ए कुवरा >लघु, लघु, लघु, दीर्घ (1,1,1,2)>फएलतुन

सारे उदाहरन गुरुदेव की पोस्ट में पड़े है...पर उस समय तो कुछ समझ में नहीं आया था...
हम इस पोस्ट को यद् न रखने की गलती मानते है...पर अब और ज्यादा अच्छा लग रहा है हालाँकि समझ में पूरी तरह से आने में वक्त लगेगा...

Ankit ने कहा…

प्रणाम गुरु जी,
कुछ देर से आया हूँ, क्लास में सब से पीछे बैठने कि आदत छूटी नहीं है.
सभी ने अच्छे उदाहरण समझाए हैं, तो मुझे थोडा सा समझ में आया है मगर ये पता नहीं कितना?
कंचन दीदी ने तो नाम को भी नहीं बक्शा वो तो रवि भाई ने सही वक़्त पे आके बचा लिया...........
एक कोशिश मेरी भी,
सबब ए सक़ील - गुम
सबब ए ख़फ़ीफ़ - पी, रब
वतद मज़मुआ - अगर, असर, वक़्त
वतद मफ़रूफ़ - लफ्ज़, शह्र
फासला ए सुगरा - सजना, अपना
फासला ए कुवरा - महकने, तड़पना

थोडा और दिलो-दिमाग पे ज़ोर डालता हूँ, फिर से आता हूँ..............

महावीर ने कहा…

सुबीर जी
'ग़ज़ल का सफ़र' को मील का पत्थर कहना तो इसकी तौहीन होगी.पत्थर तो बेजान होता है, जहाँ रख दिया बस ठहर गया, कोई हरकत नहीं.
'ग़ज़ल का सफ़र' तो एक ऐसा ब्लॉग है कि पढ़ते हुए भी बोलता हुआ सा लगता है. हिन्दी का यह पहला ब्लॉग है जिसमें ऎसी सामग्री है जो हिन्दी की पुस्तकों या अन्यत्र नहीं देखी गई हैं. जो लोग उर्दू भाषा नहीं पढ़ सकते, अभी तक वे ग़ज़ल की विशेषताओं से अपरिचित से ही देखे गए हैं. इस प्रकार का ज्ञान अगर मैं गलत न हूँ तो सिर्फ़ उर्दू के उस्तादों की उन किताबों में ही मिल पाता है जिनकी पुरानी किताबों के पन्ने उलटते उलटते टूट जाते हैं.
हिन्दी ग़ज़ल साहित्यकारों के लिए यह 'सफ़र' एक नियामत सिद्ध होगा. आपकी रिसर्च और बेलाग मेहनत रंग लाएगी और ला रही है.
दिल को यह देख कर बहुत खुशी हुई कि लोग इसे पढ़ने में बड़ी दिलचस्पी के साथ सीख रहे हैं.

वीनस केसरी ने कहा…

गुरु जी प्रणाम

फासला ए सुगरा के लिए मैंने दो शेर लिखा है

कहन से मै संतुष्ट नहीं था,अभी भी नहीं हूँ

इसलिए इतने दिन कमेन्ट नहीं किया,, फिर जब अभी भी कोई सुधार नहीं सूझ रहा है तो उदाहरण के लिए यहाँ दे रहा हूँ

मैंने सोचा मतला भी निकाल सकूं तो बढ़िया रहे मगर बन ही नहीं पाया :(

२१२२, २११२, २११२, २११२ पर लिखने का प्रयास किया है


आप तो चिलमन को उठा कर हो गये थे बेखबर
होश मेरे उड़ गये जब देख लिया ताजमहल

ख़्वाब मेरे क्यों हो गये इतने हसीं तू ही बता
क्यों तू ही मेरी सोच में आखों में बसा ताजमहल

रदीफ इतना कठिन ले लिया की आगे कुछ लिखा ही नहीं गया :)

- आपका वीनस

Shardula ने कहा…

सुबीर भैया,
गीत लिखती हूँ तो मन अधिकतर गीतों की तरफ ही रहता है और जब तक मन पूर्णत ग़ज़ल में न हो कुछ लिखना नहीं चाह रही थी.
आपका ये ज्ञान और तकनीक से परिपूर्ण पाठ बहुत पहले ही पढ़ लिया था... और मन में एक प्रश्न उठा था, आज तक कायम है...सो पूछ रही हूँ. बहुत बेवकूफी भरा प्रश्न लगे तो आप मुझे डांट सकते है ... इजाज़त है :)
चूंकि ग़ज़ल ध्वनि विज्ञान का खेल है, और कुछ तरह के शब्दों की मात्रा उठाई-गिरायी जाती है; बिना मात्रा वाले शब्दों को भी अलग-अलग तरह से गाया जाता है, उस स्थिति में किसी जुज में यदि हम निर्धारित कर देते हैं कि इस शब्द में ये वर्ण मुतहर्रिक है और ये साकिन तो क्या अलग तरह के गाने के अंदाज़ में दोनों वर्ण मुतहर्रिक नहीं हो सकते ? जैसे "क...म... से कम " या "स...ब... कहें सब पगरे मनवा" गाया जाए तो क्या 'कम' (अथवा 'सब') स्वयं दो अलग अलग तरह के जुज का उदाहरण नहीं हो सकेंगे?
वैसे तो पाठशाला के होनहार विद्यार्थियों ने कुछ आसान कर दिया है गृहकार्य, फ़िर भी इस बेवकूफी भरे प्रश्न का उत्तर आपसे पा लूँ फ़िर ही आगे लिखूंगी :)
बड़ी हूँ न आपसे तो आपसे मार खाने का डर नहीं है :)
सादर शार्दुला

Rajeev Bharol ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है.
पहली बार पढ़ा. समझ तो आया लेकिन जब उदाहरण लिखने लगा तो पता चला की कई बार और पढना पड़ेगा.
:)

Rajeev Bharol ने कहा…

गुरूजी,

पढ़ना शुरू किया है. काफी प्रश्न हैं. अगर प्रश्न Stupid लगें तो क्षमा चाहता हूँ. मैं आपके दूसरे ब्लॉग पर भी पढ़ना शुरू किया है. वह भी ज्ञान का भंडार है. इस सब के लिए धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है.

१. लाम और गाफ़ Sounds हैं. इन्हें मात्राएँ क्यों कहा जा रहा है? क्या मैं यह समझूं की ग़ज़ल में व्याकरण में केवल दो मात्राएँ होती हैं जो Basically दो sounds हैं. Long sound और Short Sound . मैं मात्रा से हिंदी वर्णमाला की मात्राओं से confuse कर रहा हूँ!

२. क्या Layman's language में यह कहा जा सकता है की जुज़ छह प्रकार के शब्द(words) होते हैं जो दो, तीन, चार या पांच विभिन्न Sounds (लघु और दीर्घ) से मिल कर बनते हैं.

३. क्या मेरा यह समझना उचित है की हालांकि 2 Basic Sounds (जिन्हें आपने मात्रा कह रहे हैं) से जुज़(Layman's Language में शब्द) बनते हैं, जुज़ से रुक्न बनते हैं और रुक्न से मिसरा बनता है; फिर भी जब मिसरे की बहर गिनी जाती है तो केवल मात्राएँ(Basic Sounds ) ही गिनी जाती हैं.

-राजीव भरोल

Rajeev Bharol ने कहा…

गुरु जी,
प्रणाम.
आपके दूसरे ब्लॉग पर पढ़ने के बाद  अब कुछ कुछ समझ में आने लगा है.
नहीं तो पहली बार  इस ब्लॉग पर आ कर ऐसे लगा था जैसे पांचवीं क्लास के बच्चे को सीधा MA की क्लास में बिठा दिया हो.

होमवर्क की कोशिश की है.


१. सबब: दो मात्रिक. उदाहरण:

>> सबब ए खफीफ़ : (पहली मात्र Dominant ) -> ? धन, ख़म, धुन, घर,
>> सबब ए सकील :  (दोनों मात्राएँ dominant ) - > कल, दल, दिल, मिल, अब.

२. वतद: तीन मात्रिक. उदाहरण:

>> वतद मज़्मुआ: (पहली दो dominant , तीसरी Silent दूसरी में मिलती हुई) -> नगर, डगर.
>> वतद मसरूफ: (पहली Dominant , दूसरी silent  लेकिन पहली में मिलती हुई, तीसरी Dominant )-> बहर, शहर, लहर.

३. फासला: चार/पांच मात्रिक. उदाहरण:
>> फासला ए सुरगा: (चार मात्राएँ, पहली तीन dominant , चौथी Silent )-> दिलबर.
>> फासला ए कुवरा: (पांच मात्राएँ, पहली चार dominant , पांचवीं Silent )->सुखनवर.


-राजीव

वीनस केसरी ने कहा…

गुरु जी प्रणाम

इल्तिज़ा है, निवेदन है, प्रार्थना है,कामना है

गजल की क्लास फिर से शुरू करिये

Rajeev Bharol ने कहा…

वीनस जी,
ये तो मिसरा हो गया:
"इल्तिज़ा है, निवेदन है, प्रार्थना है,कामना है"

पूरा करने की कोशिश करता हूँ.

इल्तिज़ा है, निवेदन है, प्रार्थना है,कामना है
गुरूजी, सिखाइए हमें ग़ज़ल को जानना है.

-राजीव

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

वीनस भाई, राजीव भाई
मैं भी आपको दोहराता हूँ.

इल्तिज़ा है, निवेदन है, प्रार्थना है,कामना है
गुरूजी, होमवर्क कैसा रहा सबको जानना है.

अर्चना तिवारी ने कहा…

मेरी भी ..

निर्मला कपिला ने कहा…

आज आपका ये सबक पढ रही हूँ और पढ कर लगता है कि गज़ल सीखना मेरे बस का रोग नही। लेकिन कोशिश करूँगी मेरे छोटे भाई की इज्जत का भी सवाल है। ये राजीव कौन से दूसरे ब्लाग की बात कर रहे हैं और किस सबक की मुझे भी बतायें। बार बार पढती हूँ क्योंकि संगीत बहुत कम सुनती हूँ शायद ये ध्व्नि विग्यान इस लिये समझ नही पाती। कोई सुझाव दें। इस महान काम के लिये बहुत बहुत आशीर्वाद।

Ankit ने कहा…

प्रणाम गुरु जी,
आगे के पाठ पढने से पहले सोचा कि पुरानों को दोहराना ज़रूरी है, और जब दोहराया तो और समझ में आ गया.

वीनस केसरी ने कहा…

गुरु जी प्रणाम,
आज फिर से पोस्ट पढ़ी तो दिमाग की बाती जली है
मेरे पहले दिए गए सारे उदाहरण रद्द समझे जाएँ

फिर से उदाहरण खोजता हूँ
--
आपका वीनस केसरी

वीनस केसरी ने कहा…

नए उदाहरण इस प्रकार हैं

सबब

सबब ए खफीफ - (१=१ = २ एक अक्षर aur एक स्वर jo गायब होगा )

क+आ = का , र+ओ = रो (क्रमशः "आ" और "ओ" साइलेंट हो रहे हैं )


सबब ए सक़ील - (1+1 = 2 ya 1+1 कोई अक्षर गायब नहीं होगा )

ह+म = हम , न+म = नम (कोई अक्षर साईलेंट नहीं हो रहा)


वतद
वतद मज़मुआ - र+ह+ओ = र हो , य+ह+ई = यही (क्रमशः "ओ" और "ई" साइलेंट हो रहे हैं )
वतद मफरूफ - क+आ+म = काम , र+आ+म = राम (दोनों में "आ" साइलेंट हो रहे हैं )

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) ने कहा…

उदहारण-

सबब-ए-खफीफ(२)-
अर्थात ऐसे शब्द जहा पर दोनों मात्राएँ संयुक्त होकर दीर्घ का आभास दे रही हों|

हम, तुम, सब, कह, रुक, चल, बढ़, जो, तू, पी, खा, सो, रो आदि आदि|

सबब-ए-सकील(११)-
अर्थात ऐसे शब्द जहा पर दोनों मात्राएँ स्वतंत्र हो|एक शब्द में ये मिलना मुश्किल है इसीलिए कामिल और वाफर कठिन बहरे हैं|

सुमनन(में "सुम")न बदल (में "न ब")
हर्फों को गिराने से ये कम आसान हो सकता है|
ये सफर(में "ये स")तू टहल (में "तू ट") आदि आदि|

वतद मज़मुआ(१२)-
न कर, मगर, पहल, यकीं, जहाँ आदि आदि|

वतद मफरूफ़(२१)-
शह्र,नाम,लाभ,अर्थ, साफ़ आदि आदि|

फासला-ए-सुगरा(११२)
रे(त हुई), आ(म नया), दा(म बता)आदि आदि

फासला-ए-कुवरा(१११२)
खा(स न मगर), दू(र न सहर)आदि आदि|