शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

ग़ज़ल का सफ़र, सफ़र उन तमाम रास्‍तों का, जिन से होकर ग़ज़ल का कारवां गुज़रता है । सफ़र जो तय होगा तकनीक के स‍हारे । तो चलिये बिस्मिल्‍लाह कह के श्रीगणेश करते हैं ग़ज़ल के सफ़र का ।

सनद रहे कि आज ठीक एक जनवरी 2010 को प्रारंभ हो रहा है ये ग़ज़ल का सफ़र । कारवां छोटा होगा किन्‍तु गुणीजनों से भरपूर होगा । कुछ सीखने के लिये और कुछ सिखाने के लिये है ये ग़ज़ल का सफ़र । आइये करते हैं शुरूआत डॉ. आज़म जी के इस शेर के साथ-

फ़लक तू वुसअ़तें अपनी बढ़ा ले

मुझे उड़ने की ख्‍़वाहिश हो रही है 

( वुसअ़त : विस्‍तार, फैलाव )

वैसे तो इस बात को लेकर कई सारी बातें हैं कि ग़ज़ल का सफ़र ठीक कब से प्रारंभ हुआ । कई सारी तारीखें आती हैं कई सारे नाम आते हैं । फिर भी एक बात तो तय है कि ग़ज़ल का व्‍याकरण बनाते समय कई सारे पिंगल शास्‍त्रों पर काम किया गया और उन सबसे से प्रेरणा लेकर तैयार किया गया गज़ल का व्‍याकरण । जिसका अरूज़ कहा गया । और इस ज्ञान को कहा गया इल्‍मे अरूज़ । यूं तो हिंदी का पिंगल शास्‍त्र विश्‍व का सबसे पुराना काव्‍य व्‍याकरण है । उसको भी हम हिंदी का न कह कर यदि संस्‍कृत का व्‍याकरण कहें तो ज्‍यादा ठीक रहेगा । तो उसी संस्‍कृत के व्‍याकरण को आधार बना कर की गई है बहरों की रचना । और उसी कारण ये होता है कि कई सारी बहरें सुनते समय कई विशिष्‍ट छंदों का आभास देती हैं । कहा ये भी जाता है कि छंदों का भारतीय तरीका, यूनानी तरीके से बहुत मिलता है । उसके पीछे भी कारण यही है कि वास्‍तव में आर्य भाषा संस्‍कृत ने ही विश्‍व में काव्‍य का जन्‍म दिया और फिर बाद में इसी संस्‍कृत के काव्‍य शास्‍त्र से विश्‍व भर के काव्‍य शास्‍त्रों ने प्रेरणा ली । शब्‍दों के उपयोग के तीन तरीकों को आधार बना कर ही तीन प्रकार के वेदों की रचना की गई । ऋगवेद, यजुर्वेद और सामवेद । शब्‍दों को प्रयोग करने की तीन शैलियां हैं पद्य, गद्य और गान । पद्य का अर्थ जिसमें मात्राओं की निश्चित संख्‍या तथा विराम और चरण हों । इस प्रकार की शब्‍द रचना को ऋक् कहा गया और विश्‍व की सबसे प्राचीन पुस्‍तक इसी प्रकार की देवताओं के आह्वान करने की ऋचाओं से बनी है । और उसी से जन्‍म लेता है विश्‍व का सबसे पुराना काव्‍य शास्‍त्र । जब छंद के नियम का पालन नहीं किया जाता तथा मात्रओं की निचित संख्‍या , पाद तथा चरण नहीं होते तब हम कहते हैं कि गद्य है उसे ही कहा गया यजु: अर्थात गद्यात्‍मक मंत्र । और इन ही यजु: से बना यजूर्वेद, जिसमें यज्ञ की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है । शब्‍दो उपयोग की तीसरी शैली है गाना या जिसे हम गान कह सकते हैं । गाये जा सकने वाले मंत्रो का नाम हुआ साम और गाये जा सकने वाले मंत्रों का संग्रह हुआ सामवेद, जिसमें कि यज्ञ के दौरान गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह किया गया है । वेद मंत्रों के बारे में कहा जाता है कि यदि आपके मुंह का एक भी दांत टूट गया तो फिर आप वेद मंत्रों का ठीक उच्‍चारण नहीं कर सकते । कुछ न कुछ दोष आ ही जाएगा । क्‍योंकि ये सारे मंत्र ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित हैं ।
हिंदी का छंद मूलत: संस्‍कृत के ही छंद से बना है । और इसका नाम पिंगल इसलिये हुआ क्‍योंकि पिंगल ऋषि ने ईसा पूर्व काव्‍य शास्‍त्र तथा छंद शास्‍त्र पर कार्य कर उसे एक स्‍वरूप प्रदान किया । अरबी फारसी का अरूज़ ईसा के पश्‍चात का है । और पिंगल शास्‍त्र की रचना अरबी फारसी के काव्‍य व्‍याकरण बनने से काफी पहले की है । बहर तथा अरूज़ के जन्‍मदाता बसरा के अल ख़लील बिन अहमद अल फरीदी थे ये करीब 1300 साल पहले सन 786 में हुए थे । माना जाता है कि ख़लील बिन अहमद को संस्‍कृत छंद तथा यूनानी छंदों का अच्‍छा ज्ञान था । तथा इन्‍हीं दोनों के सहयोग से उन्‍होंने अरबी फारसी काव्‍य का व्‍याकरण बनाया जिसको कि अरूज़ कहा गया । इन्‍होंने मात्राओं के कई सारे विन्‍यास बनाये तथा उन विन्‍यासों की विभिन्‍न तरतीबें बनाईं और फिर उन तरतीबों से निश्चित वज़न के वाक्‍य बनाये और एक निश्चित वज़न को एक बहर का नाम दे दिया । कुल 19 बहरे हैं जिनमें से 15 बहरें ख़लील बिन अहमद साहब की ही बनाई हुई हैं । वेद मंत्रों की ही तरह बहरें भी ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित हैं ।जो मात्राओं के विन्‍यास बनाए गये तथा जिनको लेकर काम किया गया वे ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित थे । उच्‍चारण का महत्‍व जो वेदों में था वही बहरों में भी है । वहां भी ग़लत उच्‍चारण से सब कुछ उलट जाता था और यहां पर भी वही हो जाता है ।
खैर ये तो केवल इसलिये कि आज शुरूआत है हमारे सफ़र की । ये नया ब्‍लाग आज से प्रारंभ हो रहा है । आप सब इसके हमसफ़र बन कर चलते रहेंगें । ऐसी उम्‍मीद है । यहां पर ग़ज़ल की तकनीकी जानकारी ही उपलब्‍ध करवाई जायेगी । यहां पर कुछ भी और नहीं होगा । जो कि पहले ही बताया जा चुका है कि ये केवल आमंत्रण से पढ़ा जाने वाला ब्‍लाग होगा । प्रारंभ में जो लोग जोड़ दिये जाएंगें वे यदि निष्क्रिय रहते हैं तो उनको हटा भी दिया जाएगा । ये ब्‍लाग प्रारंभ ही इसलिये किया जा रहा है कि सब भागीदारी दें । नहीं तो उस पहले वाले  ब्‍लाग पर सीखने तो ढेर सारे लोग आते हैं लेकिन कमेंट करने में इसलिये शरमाते हैं कि उससे लोगों को ये पता लग जाएगा कि ये भी सीखने आते हैं । उनमें वर्तमान के मंचों के एक बड़े शायर और दो मंचीय शीर्ष कवि भी हैं । जो आते बराबर हैं लेकिन आज तक कभी कमेंट करके नहीं गये । ऐसे लोगों से बचने के लिये ही है ये ब्‍लाग । ये उनके लिये है जो अपने हैं । नव वर्ष आप सबकों शुभ हो ।