शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

ग़ज़ल का सफ़र, सफ़र उन तमाम रास्‍तों का, जिन से होकर ग़ज़ल का कारवां गुज़रता है । सफ़र जो तय होगा तकनीक के स‍हारे । तो चलिये बिस्मिल्‍लाह कह के श्रीगणेश करते हैं ग़ज़ल के सफ़र का ।

सनद रहे कि आज ठीक एक जनवरी 2010 को प्रारंभ हो रहा है ये ग़ज़ल का सफ़र । कारवां छोटा होगा किन्‍तु गुणीजनों से भरपूर होगा । कुछ सीखने के लिये और कुछ सिखाने के लिये है ये ग़ज़ल का सफ़र । आइये करते हैं शुरूआत डॉ. आज़म जी के इस शेर के साथ-

फ़लक तू वुसअ़तें अपनी बढ़ा ले

मुझे उड़ने की ख्‍़वाहिश हो रही है 

( वुसअ़त : विस्‍तार, फैलाव )

वैसे तो इस बात को लेकर कई सारी बातें हैं कि ग़ज़ल का सफ़र ठीक कब से प्रारंभ हुआ । कई सारी तारीखें आती हैं कई सारे नाम आते हैं । फिर भी एक बात तो तय है कि ग़ज़ल का व्‍याकरण बनाते समय कई सारे पिंगल शास्‍त्रों पर काम किया गया और उन सबसे से प्रेरणा लेकर तैयार किया गया गज़ल का व्‍याकरण । जिसका अरूज़ कहा गया । और इस ज्ञान को कहा गया इल्‍मे अरूज़ । यूं तो हिंदी का पिंगल शास्‍त्र विश्‍व का सबसे पुराना काव्‍य व्‍याकरण है । उसको भी हम हिंदी का न कह कर यदि संस्‍कृत का व्‍याकरण कहें तो ज्‍यादा ठीक रहेगा । तो उसी संस्‍कृत के व्‍याकरण को आधार बना कर की गई है बहरों की रचना । और उसी कारण ये होता है कि कई सारी बहरें सुनते समय कई विशिष्‍ट छंदों का आभास देती हैं । कहा ये भी जाता है कि छंदों का भारतीय तरीका, यूनानी तरीके से बहुत मिलता है । उसके पीछे भी कारण यही है कि वास्‍तव में आर्य भाषा संस्‍कृत ने ही विश्‍व में काव्‍य का जन्‍म दिया और फिर बाद में इसी संस्‍कृत के काव्‍य शास्‍त्र से विश्‍व भर के काव्‍य शास्‍त्रों ने प्रेरणा ली । शब्‍दों के उपयोग के तीन तरीकों को आधार बना कर ही तीन प्रकार के वेदों की रचना की गई । ऋगवेद, यजुर्वेद और सामवेद । शब्‍दों को प्रयोग करने की तीन शैलियां हैं पद्य, गद्य और गान । पद्य का अर्थ जिसमें मात्राओं की निश्चित संख्‍या तथा विराम और चरण हों । इस प्रकार की शब्‍द रचना को ऋक् कहा गया और विश्‍व की सबसे प्राचीन पुस्‍तक इसी प्रकार की देवताओं के आह्वान करने की ऋचाओं से बनी है । और उसी से जन्‍म लेता है विश्‍व का सबसे पुराना काव्‍य शास्‍त्र । जब छंद के नियम का पालन नहीं किया जाता तथा मात्रओं की निचित संख्‍या , पाद तथा चरण नहीं होते तब हम कहते हैं कि गद्य है उसे ही कहा गया यजु: अर्थात गद्यात्‍मक मंत्र । और इन ही यजु: से बना यजूर्वेद, जिसमें यज्ञ की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है । शब्‍दो उपयोग की तीसरी शैली है गाना या जिसे हम गान कह सकते हैं । गाये जा सकने वाले मंत्रो का नाम हुआ साम और गाये जा सकने वाले मंत्रों का संग्रह हुआ सामवेद, जिसमें कि यज्ञ के दौरान गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह किया गया है । वेद मंत्रों के बारे में कहा जाता है कि यदि आपके मुंह का एक भी दांत टूट गया तो फिर आप वेद मंत्रों का ठीक उच्‍चारण नहीं कर सकते । कुछ न कुछ दोष आ ही जाएगा । क्‍योंकि ये सारे मंत्र ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित हैं ।
हिंदी का छंद मूलत: संस्‍कृत के ही छंद से बना है । और इसका नाम पिंगल इसलिये हुआ क्‍योंकि पिंगल ऋषि ने ईसा पूर्व काव्‍य शास्‍त्र तथा छंद शास्‍त्र पर कार्य कर उसे एक स्‍वरूप प्रदान किया । अरबी फारसी का अरूज़ ईसा के पश्‍चात का है । और पिंगल शास्‍त्र की रचना अरबी फारसी के काव्‍य व्‍याकरण बनने से काफी पहले की है । बहर तथा अरूज़ के जन्‍मदाता बसरा के अल ख़लील बिन अहमद अल फरीदी थे ये करीब 1300 साल पहले सन 786 में हुए थे । माना जाता है कि ख़लील बिन अहमद को संस्‍कृत छंद तथा यूनानी छंदों का अच्‍छा ज्ञान था । तथा इन्‍हीं दोनों के सहयोग से उन्‍होंने अरबी फारसी काव्‍य का व्‍याकरण बनाया जिसको कि अरूज़ कहा गया । इन्‍होंने मात्राओं के कई सारे विन्‍यास बनाये तथा उन विन्‍यासों की विभिन्‍न तरतीबें बनाईं और फिर उन तरतीबों से निश्चित वज़न के वाक्‍य बनाये और एक निश्चित वज़न को एक बहर का नाम दे दिया । कुल 19 बहरे हैं जिनमें से 15 बहरें ख़लील बिन अहमद साहब की ही बनाई हुई हैं । वेद मंत्रों की ही तरह बहरें भी ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित हैं ।जो मात्राओं के विन्‍यास बनाए गये तथा जिनको लेकर काम किया गया वे ध्‍वनि विज्ञान पर आधारित थे । उच्‍चारण का महत्‍व जो वेदों में था वही बहरों में भी है । वहां भी ग़लत उच्‍चारण से सब कुछ उलट जाता था और यहां पर भी वही हो जाता है ।
खैर ये तो केवल इसलिये कि आज शुरूआत है हमारे सफ़र की । ये नया ब्‍लाग आज से प्रारंभ हो रहा है । आप सब इसके हमसफ़र बन कर चलते रहेंगें । ऐसी उम्‍मीद है । यहां पर ग़ज़ल की तकनीकी जानकारी ही उपलब्‍ध करवाई जायेगी । यहां पर कुछ भी और नहीं होगा । जो कि पहले ही बताया जा चुका है कि ये केवल आमंत्रण से पढ़ा जाने वाला ब्‍लाग होगा । प्रारंभ में जो लोग जोड़ दिये जाएंगें वे यदि निष्क्रिय रहते हैं तो उनको हटा भी दिया जाएगा । ये ब्‍लाग प्रारंभ ही इसलिये किया जा रहा है कि सब भागीदारी दें । नहीं तो उस पहले वाले  ब्‍लाग पर सीखने तो ढेर सारे लोग आते हैं लेकिन कमेंट करने में इसलिये शरमाते हैं कि उससे लोगों को ये पता लग जाएगा कि ये भी सीखने आते हैं । उनमें वर्तमान के मंचों के एक बड़े शायर और दो मंचीय शीर्ष कवि भी हैं । जो आते बराबर हैं लेकिन आज तक कभी कमेंट करके नहीं गये । ऐसे लोगों से बचने के लिये ही है ये ब्‍लाग । ये उनके लिये है जो अपने हैं । नव वर्ष आप सबकों शुभ हो ।

37 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत कुछ लिखना चाहता था लेकिन जब लिखने बैठा हूँ तो कुछ लिखा ही नहीं जा रहा...हम जैसे तालिबे इल्म इस ब्लॉग के लिए आपके एहसान मंद हैं...मुझे यकीन है की आपका ये ब्लॉग ग़ज़ल लेखन के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा...अभी इतना ही...फिर बाद में आता हूँ...

नीरज

RAVI KANT ने कहा…

चिर-प्रतीक्षित स्वप्न आज पूरा हुआ। अभिभूत हूं, कहते हैं ना-"अमृतं शिशिरे वह्निः अमृतं प्रिय-दर्शनं"। ध्वनि-विज्ञान के आविष्कारकों के समक्ष स्वतः सिर श्रद्धा से झुक जाता है। सुना है इस विधा के जानकार गलत हाथों में जाने और गलत प्रयोग होने के प्रति इतने सतर्क थे कि हजारों सालों तक इसे लिखने से कतराते रहे। अस्तु, यह ज्ञान गुरू से शिष्य के कानों तक दिया जाता रहा ताकि धवनि का ठीक-ठीक ज्ञान हो सके और यही कारण है कि वेदों को आज भी "श्रुति" नाम से जाना जाता है अर्थात सुनकर जिसका ज्ञान हो। इस तीर्थ-यात्रा में आपने मुझ अकिंचन को भी सहयात्री के रूप में चुना, यह आनंद की बात है मेरे लिये और मेरी पूरी कोशिश होगी कि आपका श्रम निरर्थक न जाये। पहला पाठ जबरदस्त है, आगे का इंतज़ार रहेगा।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

सर्वप्रथम मैं आभारी हूँ की मुझे इस सफ़र का सहयात्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. जितनी आशा और अपेक्षा के साथ मैंने प्रवेश किया. उससे कई गुना ज्यादा अभीष्ट की प्राप्ति हुई है इस पहले पोस्ट में.

जब गुरुदेव सुबीर सर इतना मेहनत कर रहे है, तो हमे भी अपनी जिम्मेदारी श्रद्धापूर्वक निभानी चाहिए. ग़ज़ल-का-सफ़र आज के इन्टरनेट युग में एक क्रांतिकारी कदम है. कहना न होगा की हम जैसे विद्यार्थियों के लिए यह वरदान सरीखा है.

आज के पोस्ट के लिए मैं यही कहूँगा - ध्वनि सम्बन्धी विभिन्न भाषा और व्याकरण अत्यंत ज्ञानवर्धक, ऐतिहासिक और रोचक दस्तावेज है.

सफ़र के सभी साथियों को सलाम
नववर्ष की बधाई एवं शुभकामनाओं सहित
- सुलभ

अभिनव ने कहा…

आदरणीय गुरुदेव, सादर प्रणाम.

आपको, आपके परिवार को तथा इस ब्लॉग के सभी पाठकों तथा छात्रों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं. आपने बहुत बढ़िया बात बताई उच्चारण के सन्दर्भ में. उर्दू के सन्दर्भ में तो कहते भी हैं की नुक्ते के हेर फेर से ख़ुदा जुदा हो जाता है. आज का अध्याय पढ़ते हुए राकेश खंडेलवाल जी की चार पंक्तियाँ याद आ गयीं,

बोझ उसका है काँधे पे भारी बहुत, जो धरोहर हमें दी है वरदाई ने,
और रसखान की वह अमानत जिसे, बांसुरी में पिरोया था कन्हाई ने,
हमको खुसरो के पदचिन्ह का अनुसरण, नित्य करना है इतना पता है हमें,
और लिखने हैं फिर से वही गीत कुछ, जिनको सावन में गाया है पुरवाई ने.

आपका
अभिनव

गौतम राजऋषि ने कहा…

अहा ! तो आ ही गया ये दिन! कब से प्रतिक्षा थी!!

बहरों की विशेष और अछूति जानकारियाँ मिलेंगी, सोचकर ही पूरा वजूद रोमांच से भरा जा रहा है। इस ब्लौग पर पोस्टों की फ्रिक्वेंशी क्या रहेगी सर? और क्या आप कुछ होमवर्क देने का इरादा कर रहे हैं हम छात्रों के लिये। होमवर्क इसलिये जरुरी है कि आचार्य को सहुलियत होगी छात्रों के लगन की थाह पाने में। वो टिप्पणी बक्से का कुछ कीजिये न गुरुवर। थोड़ी मुश्किल हो जाती है वर्ना अगर हम पोस्ट को देखकर कमेंट नहीं लिख रहे हैं तो...

आगाज़ ने झूमा दिया!

Ankit ने कहा…

प्रणाम गुरु जी,
आपको और "ग़ज़ल का सफ़र" के पूरे परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.
नव वर्ष की इतनी बेहतरीन शुरुआत हुई है की क्या कहिये, ये ज्ञान धारा यूँ ही प्रवाहित होती रहे.
गौतम भईया की "कमेन्ट बॉक्स' वाली बात का मैं समर्थन करता हूँ,

प्रकाश पाखी ने कहा…

गुरुदेव,
नई कक्षा में आकर अभिभूत हूँ.जरूर पिछले जन्म के पुन्य होंगे जो सरस्वती माँ कृपा कर रही है.वर्ना मुझ जैसे व्यक्ति को यह अवसर नहीं मिलता.सर्व प्रथम भारत के छंद शास्त्र के वैदिक ऋषियों और अल खलील बिन अहमद अल फरीदी को प्रणाम करते हुए कक्षा में अपने विद्या अध्ययन का श्रीगणेश करने के लिए आपको प्रणाम करता हूँ.
आशा करता हूँ कि यह उत्सुकता भी जल्दी शांत होगी कि अल खलील बिन अहमद अल फरीदी की १५ बहरों के अलावा ४ बहरे किसने सृजित की है?
ब्लॉग बहुत शानदार है.आपके प्रयासों को साधुवाद.
प्रकाश पाखी

प्रकाश पाखी ने कहा…

गुरुदेव,
नई कक्षा में आकर अभिभूत हूँ.जरूर पिछले जन्म के पुन्य होंगे जो सरस्वती माँ कृपा कर रही है.वर्ना मुझ जैसे व्यक्ति को यह अवसर नहीं मिलता.सर्व प्रथम भारत के छंद शास्त्र के वैदिक ऋषियों और अल खलील बिन अहमद अल फरीदी को प्रणाम करते हुए कक्षा में अपने विद्या अध्ययन का श्रीगणेश करने के लिए आपको प्रणाम करता हूँ.
आशा करता हूँ कि यह उत्सुकता भी जल्दी शांत होगी कि अल खलील बिन अहमद अल फरीदी की १५ बहरों के अलावा ४ बहरे किसने सृजित की है?
ब्लॉग बहुत शानदार है.आपके प्रयासों को साधुवाद.
प्रकाश पाखी

प्रकाश पाखी ने कहा…

गुरुदेव,
नई कक्षा में आकर अभिभूत हूँ.जरूर पिछले जन्म के पुन्य होंगे जो सरस्वती माँ कृपा कर रही है.वर्ना मुझ जैसे व्यक्ति को यह अवसर नहीं मिलता.सर्व प्रथम भारत के छंद शास्त्र के वैदिक ऋषियों और अल खलील बिन अहमद अल फरीदी को प्रणाम करते हुए कक्षा में अपने विद्या अध्ययन का श्रीगणेश करने के लिए आपको प्रणाम करता हूँ.
आशा करता हूँ कि यह उत्सुकता भी जल्दी शांत होगी कि अल खलील बिन अहमद अल फरीदी की १५ बहरों के अलावा ४ बहरे किसने सृजित की है?
ब्लॉग बहुत शानदार है.आपके प्रयासों को साधुवाद.
प्रकाश पाखी

प्रकाश पाखी ने कहा…

गुरुदेव,
नई कक्षा में आकर अभिभूत हूँ.जरूर पिछले जन्म के पुन्य होंगे जो सरस्वती माँ कृपा कर रही है.वर्ना मुझ जैसे व्यक्ति को यह अवसर नहीं मिलता.सर्व प्रथम भारत के छंद शास्त्र के वैदिक ऋषियों और अल खलील बिन अहमद अल फरीदी को प्रणाम करते हुए कक्षा में अपने विद्या अध्ययन का श्रीगणेश करने के लिए आपको प्रणाम करता हूँ.
आशा करता हूँ कि यह उत्सुकता भी जल्दी शांत होगी कि अल खलील बिन अहमद अल फरीदी की १५ बहरों के अलावा ४ बहरे किसने सृजित की है?
ब्लॉग बहुत शानदार है.आपके प्रयासों को साधुवाद.
प्रकाश पाखी

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

आदरणीय गुरूदेव,

सर्वप्रथम नववर्ष की मंगलकामनायें,

इस ब्लॉग के निंमत्रण मिलना नववर्ष का सबसे प्यारा तोहफा मिला और आपका शिष्यत्व मिल जाने की खुशी भी।

सभी सहपाठियों को नूतनवर्षाभिनन्दन!!!

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

प्रकाश पाखी ने कहा…

GALTI SE BUTTON CHAAR BAAR DAB GAYA AUR PAHLE DIN KOI TIPPNI MITANA NAHI CHAHTA
ASUVIDHA KE LIYE KHE HAI...VAISE GURDEV AAPKA AADESH TIPPNI LIKHNE KA HAI MITANE KA NAHI..
TO ISKI JYADA SAJA TO NAHI MILEGI...BAS UMMEED KARTA HOON!
PRAKASH PAKHI

pran sharma ने कहा…

GAZAL KE SAFAR MEIN SABHEE
LAABHANVIT HONGE.MEREE BADHAAEE.

मनोज कुमार ने कहा…

प्रणाम गुरुदेव। इस सफ़र के राह पर प्रवेश देने के लिए आभारी हूं। आपके सानिध्य में इस विधा को सीखने का सौभाग्य नव वर्ष का सबसे बड़ा उपहार है। आपको नूतन वर्षाभिनंदन।

Udan Tashtari ने कहा…

मास्साब का नूतन वर्ष के प्रथम दिवस पर हार्दिक अभिनन्दन.

यह एक अनुपम प्रयास है एवं आपने मुझे इस योग्य समझा और इस प्रयास से जोड़ा, इस हेतु कोटिशः आभार.

नियमित रहने का भरसक प्रयास होगा.

अनन्त शुभकामनाएँ.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

Wishing you sky…एक आसमान ...

And the shore . . .एक साहिल

Wishing you meadows…एक वादी

Where flowers galore… महकती फूलों से

Wishing you company . . .प्रियजन का संग साथ

And solace . . .और कुछ ..एकांत

Lots of happiness …
खुशियों का समंदर
और हसीं हुस्न की बहार

and lots of grace !

All this and more for you in New year and always. . .
… And some more : )
ये सभी और भी बहुत सारा , इस नये साल में भी और हमेशा
क्या माजरा है ? :-( मैं समझी नहीं ..पर अगर मेरा छोटा भाई दुखी है तब मुझे भी अवसाद है
हमारे सभी साथियों को नये साल के मंगल पर्व पर,
हार्दिक मंगल कामनाएं ......
अग्रिम आभार ...आपकी मेहनत रंग लायेगी
जलनेवालों की शामत ..आयेगी ;-)
अब मुस्कुरा दीजिये...
आज जश्न की रात और ये महफ़िल
बस वल्लाह ................
सादर, स - स्नेह,

- लावण्या

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

सुबह हो रही है, नई नई सी हवा बह रही है
आओ साथियों साथ साथ चलें , मिलकर के,
यकीनन,ग़ज़ल के सफ़र की शुरुआत हो रही है
शुभमस्तु
आप का यह नया प्रयास सफल हो ,
सीख्नेने की कोइ उमर कभी नहीं होती
हम भी शामिल हैं ..........आप ज्ञान बाँटिये
माँ सरस्वती सब पर कृपा करें
- सस्नेह नव वर्ष की बधाई
- लावण्या

Devi Nangrani ने कहा…

Meri dakhila 2010 ke liye zaroor kejiyega..samay jaga raha hai!!!

Devi nangrani

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

इक नये वर्ष की उक नई भोर में
ये शुरू जो हुआ है गज़ल का सफ़र
इससे जुड़ के चलें तो ही जानें सभी
क्या हुआ काफ़िया क्या रही है बहर
सीखने के लिये आ रहे हैं सभी
आप जितना भी चाहें सिखाते रहें
सींचिये आप अश आअर के नीर से
और छतनार हो वे गज़ल का शजर

निर्मला कपिला ने कहा…

प्रिय भाई सुबीर जी आपका धन्यवाद कैसे करूँ। आपने मुझे भी इस ब्लाग पर आने का सौभाग्य दिया। कल नेट पर नहीं आ सकी इस लिये क्षमा चाहती हूँ। आप सही मे बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। नहीं तो लोग अपनी काबलियत और बहुत सी विधायें जो वो जानते हैं अपने साथ ही ले जाते हैं। वो नहीं चाहते कि कोई उन से आगे जाये़ । और आपकी ये साहित्य सेवा हमेशा दुनिय्ता भर मे याद रखी जायेगी। नये साल की बहुत बहुत शुभकामनायें । धन्यवाद्

"अर्श" ने कहा…

सच कहूँ तो दिल में ख़ुशी की गुदगुदी हो रही है इस ब्लॉग के आरम्भ पर
सभी ने सच ही कहा है के प्रतीक्षित खाब पुरे होने जैसा है यह ब्लॉग के
आरम्भ होने पर .. अछे और बुरे दो ही तरह के इंसान होते हैं दुनिया में
मगर बुरा इंसान भी बुरा नहीं होता बस उसकी बुराईयाँ बुरी होती है
और हमें उसी से बचना है , ग़ज़ल की तकनिकी बातें सिखने को मिलेंगी
इससे बढ़िया बात और उपहार हमारे लिए नए साल में आपके तरफ से और
क्या हो सकता है , इससे बेहतरी की उम्मीद यही हो सकती की हम भी कभी
सिहोरे का पाक जमीं पर आयें और आपके सानिध्य में सीखें ... मगर
तकनिकी ज्ञान तकनिकी तौर पर मिल रही है आज कल क्युनके द्दुनिया
कंप्यूटर पर चलने लगी है .. नव वर्ष पर सभी गुरु कुल के भी बहनों को
मेरे तरफ से ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ... सिखने की कोई उम्र नहीं
होती जैसा की आपने खुद कहा है निर्मला माता जी की उपमा देकर
सच भी यही है ... हमें बस लगन से उपासना करनी है ग़ज़ल पर , पर सभी को
एक साथ चलना होगा .. आपको प्रणाम गुरु देव...
इस नविन वर्ष की ढेरो शुभकानाएं सभी को ...

आप सभी का
अर्श

Shardula ने कहा…

सबसे पहले तो : माँ शारदा आप पे और हम सब साथियों पे अपनी आशीष बनाए रखें. ये सफ़र हम सबको नए मुकामों तक ले जाए.
आपने मुझे इस सफ़र में साथ चलने लायक समझा ये मेरे लिए गर्व की बात है. धन्यवाद कह के आपका मान कम न करूँगी भैया.
बस यही प्रार्थना कि इतनी क्षमता रहे मुझे में कि साथ चल सकूँ सबके और कुछ सीख सकूँ.
पहला पाठ पढ़ा और बहुत सी नईं और रोचक बातें पता चलीं.
एक बात जो प्लेटो ने कही याद आ गई, उसे as it is अंग्रेज़ी में ही लिख रही हूँ:
"I know not how I may seem to others, but to myself I am but a small child wandering upon the vast shores of knowledge, every now and then finding a small bright pebble to content myself with"-- Plato

हम सब आज एक ऐसे ही साहिल पे हैं.

***
दो बातें हैं, बड़े असमंजस में हूँ कि जब आप पढ़ा रहें हैं और मैं पढ़ रही हूँ तो भी क्या आपको भईया कह सकती हूँ क्या इस ब्लॉग पे कमेन्ट देते हुए :)
दूसरा कि नई पोस्ट आ गई है इसका पता क्या आप हर बार मेल से देंगे कि हमें ही देखते रहना होगा.

हाँ, ब्लॉग का गेट-उप अच्छा लगा.
आगाज़ जिस शेर से हुआ, बहुत ही प्यारा और positive लगा.
सादर शार्दुला

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

पिछली बार इतना लंबा कमेंट कर गई थी प्वॉइंट वाइज़ नोट बना कर....! ऊँऊँऊँ

मेरा कमेंट कहाँ गया ??

अभ जा रही हूँ.. वैसे बता दूँ कि सब याद कर लिया है हमने हाँ....!!!!!!!!!!!!! देर से भले आऊँ कोर्स कंप्लीट रहता है।

अर्चना तिवारी ने कहा…

मैं आभारी हूँ कि मुझे भी 'ग़ज़ल का सफ़र' में भाग लेने के लिए आमंत्रण मिला...लेख पढ़कर बहुत सारी जानकारी प्राप्त हुई...बस गुनते रहना है...मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई आज जब मुझे इसका निमंत्रण मिला...बहुत-बहुत धन्यवाद !

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

साथ जोड़ने के लिए आभारी हूँ, जो ज्ञान प्राप्त होगा, उसकी कमी महसूस हो रही थी. अगर मैंने ग़ज़ल लिखनी शुरू कर दी तो भैया बहुत प्रसन्न होंगे, चाहे उन्होंने चाँद -तारों के पार अपना घर बना लिया है, पर वे हर समय मुझे वहाँ से देखते तो रहते हैं.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गुरुदेव प्रणाम .......... ६ दीनो के प्रवास के बाद आज मैल खोलने का मौका मिला और मन प्रसन्न हो गया आमंत्रण देख कर ..... किस तरह आपका शुक्रिया करूँ ......... आपने मुझे भी इस लाएक समझा ........ लग रहा जैसे कोई स्वप्न पूरा होने जा रहा है .......... और इस ब्लॉग की पहली पोस्ट तो इतनी महत्वपूर्ण जानकारी के साथ है ......... लग रहा है जैसे ग्यान का खजाना है .... ग़ज़ल का इतिहास कहीं न कहीं संस्कृत से जुड़ा है जान कर बहुत गर्व होता है ...... ये ब्लॉग ग़ज़ल की दुनिया में मील का पत्थर साबित होगा ....... आने वाले समय की धरोहर बनेगा ........
एक बार फिर से बहुत बहुत आभार ..........

Pawan Kumar ने कहा…

Subir....
no words for giving u thanks.....This is a boon for all of us who r new in Ghazal writing.
regards

महावीर ने कहा…

'सफ़र का ग़ज़ल' ग़ज़ल के तकनीक और बारीकियों की दिशा में केवल छात्रों के हित के लिए ही नहीं, ग़ज़लकारों को भी शोध कार्य में सहायक सिद्ध होगा. एक बहुत ही प्रसंशनीय क़दम है.
सुबीर जी 'सफ़र का ग़ज़ल' के लिए हार्दिक बधाई.

श्रद्धा जैन ने कहा…

वाह ये तो मुंहमांगी मुराद मिल जाने के जैसा है
मुझे ग़ज़ल का सफ़र के शुरू होने की प्रतीक्षा रहेगी
इस ब्लॉग पर आकर ज्ञान बढ़ेगा और विचार विमर्श से नयी जानकारियाँ सामने आएँगी
शुक्रिया

प्रकाश पाखी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Shardula ने कहा…

बसंत पंचमी पे पाठशाला में आयी थी माँ शारदा के लिए दीपक रखने! सब पे माँ की कृपा बने और बढ़ती रहे!

वीनस केसरी ने कहा…

guru jee pranaam

aaj kee post kaa intazaar hai

venus

Ankit ने कहा…

सोचा की नयी पोस्ट को पढने से पहले पुराने पाठ का एक और बार पढ़ लिया जाये,
जब आप पिंगल शास्त्र कहते थे तो ये शंका उठती थी आखिर ये पिंगल क्यों कहा जाता है, मगर जब कभी भी बात हुई तो ध्यान नहीं रहा पूछने का अब ये जाना की पिंगल ऋषि के कारन की इसे पिंगल शास्त्र कहतेहैं.

Rajeev Bharol ने कहा…

धन्यवाद सुबीर जी.
बहुत सुंदर शुरुआत है. बहुत अच्छी कोशिश है. सीखने वालों को बहुत फायदा होगा.
वीनस जी को भी धन्यवाद जिन्होंने मुझ यहाँ तक का रास्ता बताया.

-राजीव भरोल

Devi Nangrani ने कहा…

Is prayas ko silsilewaar aur age ..aur aage badaya jaana hi shagirdon ko sahi raah par la paayega. Subeer ji yeh pathshala ghazal ke sansar mein ek meel ka pathar hai. bahut bahut badhayi ke saath...

dr.rajkumar patil ने कहा…

subeerji,bahut bahut shukriya, apne mujhe aamantrit kiya.aap bahumulya jankari de rahe hai sabko...

Tapan Dubey ने कहा…

बहुत देर से मगर पंहुचा तो सही इस ब्लॉग पर । आदरणीय गुरूजी को धन्यवाद ।