शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

रुक्‍नों के बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्‍प मालूम होती है । मात्राओं से मिलकर कर जुज़ बनना और जुज़ों से मिलकर रुक्‍न बनना ।

पिछले अंक में हमने ये देखा था कि जो पांच मात्रिक रुक्‍न हैं वे कैसे बनाये जाते हैं । पिछली बार हमने ये भी देखा था कि कुल जो सात मुफ़रद बहरें हैं जो अलग अलग स्‍थाई रुक्‍नों से बनी हैं उनमें से दो मुत‍दारिक तथा मुतकारिब  ये दोनों ही बहरें पांच मात्रिक रुक्‍न के स्‍थाई विन्‍यास से बनीं हैं । और इन दोनों के स्‍थाई पांच मात्रिक रुक्‍न हैं फाएलुन और फऊलुन  । हमने इन दोनों ही रुक्‍नों को बनाने का तरीका पिछले अंक में देखा था । आज बात करते हैं बाकी के 6 रुक्‍नों की । जैसा कि पिछले अंक में  हमने देखा था कि सारी की सारी बहरें कुल आठ प्रकार के रुक्‍नों की ही उत्‍पत्तियां हैं । ये आठ प्रकार के मात्रिक विन्‍यास हैं जो आठ रुक्‍न कहलाते हैं । ये ही वे आठ हैं जो सारी ग़ज़लों के जन्‍मदाता हैं ।

आज कुछ पिछली बातें करने के लिये ये पोस्‍ट लिखी है । पिछली बातें इसलिये करनी ज़ुरूरी हैं कि अब जो काम हम करने वाले हैं उसमें पिछले अध्‍यायों की आवश्‍यकता बहुत पड़नी है । कई सारे लोग ऐसे हैं जो कि नये आये हैं । वे सुबीर संवाद सेवा के साथ प्रारंभ से नहीं जुड़े हैं । इसलिये मुझे लगता है कि उनकी सुविधा के लिये एक बार पिछले एक पाठ का जो कि सुबीर संवाद सेवा से लिया जा रहा है लेकिन उसमें काफी परिवर्तन किये जा रहे  हैं ।

बहरें

यदि हम बहरों की परिभाषा निकालना चाहें तो वो कुछ यूं होगी कि निश्चित रुक्‍नों के निश्चित क्रम को एक विशिष्‍ट बहर कहा जाता है । जैसे रुक्‍नों की परिभाषा ये है कि निश्चित जुज़ों के निश्चित क्रम को रुक्‍न कहा जाता है । जैसे जुज़ की परिभाषा ये है कि निश्चित मात्राओं के निश्चित क्रम को जुज़ कहते हैं ।

बहरों के बारे में हम पहले ये जान चुके हैं कि बहरें मूल रूप से दो प्रकार की होती हैं । मुफ़रद और मुरक्‍कब

पहले बात करते हैं मुफ़रद बहरों की ।

मुफ़रद बहरें  ये बहरें एक ही प्रकार के रुक्‍नों के संयोग से बनती हैं । अर्थात इनके बनाये जाने में केवल एक ही प्रकार का रुक्‍न उपयोग किया जाता है । ये कुल सात प्रकार की होती हैं तथा हरेक का अपना अपना स्‍थाई रुक्‍न होता है ।

1 बहरे मुतदारिक : स्‍थाई रुक्‍न फाएलुन ( 212 ),  2 बहरे मुतकारिब - स्‍थाई रुक्‍न फ़ऊलुन ( 122 )

3 बहरे हजज : स्‍थाई रुक्‍न मुफाईलुन ( 1222) ,   4 बहरे वाफ़र : स्‍थाई रुक्‍न मुफाएलतुन ( 12112)

5 बहरे रजज : स्‍थाई रुक्‍न मुस्‍तफएलुन  ( 2212),  6 बहरे कामिल : स्‍थाई रुक्‍न मुतफाएलुन ( 11212 )

7 बहरे रमल : स्‍थाई रुक्‍न फाएलातुन ( 2122 )

ये कुल मिलाकर सात मुफरद बहरें हैं जो कि सात प्रकार के रुक्‍नों से बनी हैं । इनमें से भी यदि आप  हजज और वाफ़र  तथा  रजज और कामिल  को गौर से देखें तो आप पाएंगें कि इन दोनों का ही मात्रिक विन्‍यास लगभग एक जैसा नज़र आ रहा है । हजज के 1222 में जो तीसरे नंबर की दीर्घ है वो वाफर में आकर 11 हो गई है । इसी प्रकार से रजज की 2212 में पहली दीर्घ कामिल में 11 हो गई है । अब आप कहेंगें कि उससे क्‍या फर्क पड़ा बात तो एक ही रही । जी नहीं बात अलग हो गई है । जब हम 11 लिखते हैं तो उसका मतलब होता है कि हम दो स्‍वतंत्र लघु मात्राओं की बात कर रहे हैं । न अगर कहीं इसका वज्‍न 11212 है ये कामिल का रुक्‍न है । तुम हो कहीं  इसका वज्‍न 2212 है ये रजज का रुक्‍न है । क्‍या फर्क है ? फर्क ये है कि न अगर कहीं  में जो   है वो अगर  के   के साथ संयुक्‍त नहीं हो रहा है । दोनों अपने स्‍थान पर स्‍वतंत्र हैं । जबकि तुम हो कहीं  में दोनों मात्राएं संयुक्‍त होकर दीर्घ हो गई हैं । न शाम अगर  का वज्‍न होगा 12112 अर्थात ये बहरे वाफर का रुकन है ( जो उर्दू हिंदी में नहीं के बराबर उपयोग होती है । ) जबकि न शामों को   का वज्‍न 1222 होगा जो हमारी सबसे पापुलर बहर हजज का रुक्‍न है । इस छोटे से अंतर के चलते दो अलग प्रकार के रुक्‍न बन जाते हैं और दो अलग प्रकार की बहरें जन्‍म लेती हैं ।

तो इस प्रकार से सात मात्रिक विन्‍यास के 6 रुक्‍न हुए 1222, 12112, 2212, 11212, 2122 और अंत में 2221, ये जो अंत में हमने लिया है 2221 ( मफऊलातु ) इस पर कोई भी मुफरद बहर नहीं है लेकिन ये भी स्‍थाई रुक्‍न है । दो 5 मात्रिक रुक्‍न 212,  122 को मिलाकर ये होते हैं कुल आठ स्‍थाई रुक्‍न जिनकी गर्भ से ही सारी की सारी बहरों का जन्‍म होता है ।

अब कुछ लोग पूछ सकते हैं कि सर झुकाओगे तो पत्‍थर देवता हो जायेगा ( बहरे रमल मुसमन महजूफ ) को भी हम मुफ़रद बहर  क्‍यों कह रहे हैं जबकि इसमें तो एक रुक्‍न बदल गया है । और मुफरद बहर की तो परिभाषा है कि उसमें एक ही प्रकार के रुक्‍न आते हैं । जबकि इसमें तो हो रहा है फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन  अब ये जो अखिरी में फाएलुन हो गया है ये तो अलग रुक्‍न आ गया है । दरअसल में ये एक प्रकार की मात्रिक घट बढ़ है जिसमें किया ये गया है कि फाएलातुन की आखिरी की एक दीर्घ मात्रा ( सबब-ए-खफीफ ) हटा दी गई है इसलिये ये 2122 से 212 हो गया है और इस प्रकार अंत की मात्रा को कम करने के तरीके को हज़फ़  करना कहते हैं और इस प्रकार की घट बढ़ से बने रुक्‍न को महजफ ( या महजूफ )  कहते हैं । इसीलिये इसके नाम में बहरे रमल मुसमन के साथ महजूफ  भी लगेगा ये बताने के लिये कि इसमें मूल रुक्‍न से एक सबब-ए-ख़फीफ़ अंत से कम किया गया है ।

जिहाफत : जब किसी स्‍थाई रुक्‍न के मात्रिक विन्‍यास के जुज में किसी प्रकार की घट बढ की जाती है ताकि नया रुक्‍न पैदा हो सके तो उसको जि़हाफ़त कहते हैं । चूंकि ये जो कम बढ़ की जा रही है इसके कारण एक नया रुकन बन गया है । लेकिन ध्‍वनि विन्‍यास में वह अपने मूल रुक्‍न से मिलता जुलता ही है । तो जहां जहां ये जिहाफत की जायेगी वहां वहां जो रुक्‍न पैदा होगा उसे मुज़ाहिफ़ रुक्‍न  कहा जायेगा और उस प्रकार की बहर को फिर मुजा़हिफ बहर कहा जायेगा । जि़हाफ़त  से पैदा हुआ मुजा़हिफ़ ।  अब इस जि़हाफत के कई सारे तरीके हैं । जो तरीका लगाया जायेगा उस नाम का रुक्‍न पैदा होगा । जैसे हमने ऊपर देखा कि जि़हाफत  के लिये हज़फ़ तरीका इस्‍तेमाल किया गया तो जो मुजाहिफ रुक्‍न  बना उसका नाम भी महजूफ  हो गया । इस प्रकार से ये भी ज्ञात हुआ कि जिहाफत के जो कई प्रकार हैं उनमें से एक प्रकार का नाम है हज़फ़ ।

तो अब यहां तक आकर हमारे पास मुफ़रद बहरों में भी दो प्रकार की बहरें हो गईं सालिम और मुज़ाहिफ । इसमें सालिम का मतलब ये कि बहर का मूल रुक्‍न एक बार, दो बार, तीन बार जितनी बार भी आ रहा हो अपने मूल रूप में ही हो, किसी प्रकार की कोई मात्रिक छेड़ छाड़ उसके साथ नहीं की गई हो । जैसे फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन अब इसमें रमल का मूल रुक्‍न चारों बार अपने मूल रूप में दोहराया गया है सो ये सालिम बहर है । लेकिन जैसे ही जिहाफत करके फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन   हुआ वैसे ही ये मुजाहिफ बहर हो गई ।

तो ये तो हुइ मुफरद, सालिम और मुजाहिफ की परिभाषा । अब ये मुरक्‍क्‍ब क्‍या बला है बात करते हैं अगले अंक में । ईश्‍वर ने चाहा तो तो अगला अंक जल्‍दी ही होगा । इस माह में दो तो हो ही गये हैं । मुरक्‍कब की बात करके ही फिर हम बाकी के रुक्‍नों को बनाना सीखेंगें  ।

मुझे लगता है कि अब ग़ज़ल का सफ़र पढ़ने में किसी को कोई दिलचस्‍पी नहीं है नहीं तो ऐसा कैसे होता कि कमेंट 48 से सीधे 8 पर आ गये । या हो सकता है लोगों के पास पढ़ने का समय तो है पर कमेंट का नहीं है । व्‍यस्‍तता का युग है ।

तो अंत में एक बार सारे आठ स्‍थाई रुक्‍नों की लिस्‍ट :-

1 फाएलुन 212

2 फऊलुन 122

3 मुस्‍तफएलुन 2212

4 मुतफाएलुन 11212

5 फाएलातुन 2122

6 मुफाईलुन 1222

7 मुफाएलतुन 12112

8 मफऊलातु 2221

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

बुहत दिनों के बाद यहां पर कोई नई पोस्‍ट लग रही है । इस बीच में काफी कुछ हो गया है । शिवना प्रकाशन का यादगार मुशायरा और सिद्धार्थनगर का यादगार कवि सम्‍मेलन । खैर आज वहां से शुरू करते हैं जहां पर बात को छोड़ा था ।

ग़ज़ल का सफ़र इसको लेकर जिस प्रकार से योजना बनाई थी उस प्रकार से काम तो नहीं हो पा रहा है । उसके पीछे कारण कई हैं लेकिन हां ये बात भी सही है कि यहां पर जिस प्रकार से काम होना चाहिये था उस प्रकार से हो नहीं पा रहा है ।( जिंदगी का दूसरा नाम परेशानियां है ) पहले सोचा था कि सप्‍ताह में एक पोस्‍ट लगाने का । लेकिन उसमें भी परेशानी आई तो फिर माह में एक पोस्‍ट पर बात आई । वो तो ठीक चला लेकिन पिछले कुछ दिनों से वो सिलसिला भी टूट गया । खैर अब जुलाई आ गई है । बहुत अच्‍छी बरसात के एक दो दौर हो चुके हैं तो आज कुछ आगे की ओर बढ़ते हैं ।

पिछले अंक में हमने देखा कि किस प्रकार के और कितने जुज होते हैं । हमने देखा कि सबब-ए-ख़फीफ़, सबब-ए-सक़ील, वतद मजमुआ, वतद मफ़रूफ़, फासला-ए-सुगरा, फासला-ए-कुबरा  ये जुज की कुछ कि़स्‍में हैं । पिछले अंक में हमने देखा था कि जुज का अर्थ होता है मात्राओं को विशिष्‍ट प्रकार से विन्‍यास । और इन विन्‍यासों को ही मिलाकर फिर हम आगे बनाएंगें रुक्‍न । यहां पर ये जानना भी ज़रूरी है कि रुक्‍न कुल मिलाकर आठ प्रकार के ही बनाए गए तथा उन आठ प्रकार के रुक्‍नों से ही बाकी के सारे रुक्‍न बनाये गये । आठ रुक्‍न ही असल रुक्‍न हैं बाकी तो इन रुक्‍नों से ही जन्‍म लिये हैं । खैर इन रुक्‍नों की बात तो हम बाद में करेंगे ही । आज तो बात करते हैं उन तरीकों की जिनसे कि रुकन बनाये गये हैं ।

रुक्‍न :- जैसा कि ऊपर कहा कि कुल मिलाकर आठ ही प्रकार के रुक्‍न हैं ।

खुमासी :- खुमासी रुक्‍न कहा जाता है पांच मात्रिक रुक्‍नों को । स्‍थायी आठ रुक्‍नों में से दो रुक्‍न खुमासी रुक्‍न हैं । जिनमें जुज को इस प्रकार से व्‍यवस्थित किया गया है कि मात्राओं का कुल जोड़ पांच ही आये । इस प्रकार के दो ही रुक्‍न हैं एक है  फऊलुन  और दूसरा फाएलुन  अर्थात 122  तथा 212  के मात्रिक विन्‍यास के रुक्‍न ।

फऊलुन :-  इस रुक्‍न को यदि तोड़ कर देखा जाये तो इसका विन्‍यास कुछ यूं बनेगा 12+2=122 अर्थात एक जुज हमको लेना है 12  विन्‍यास के साथ और एक जुज लेना है 2 विन्‍यास के साथ । हमने पिछले अंक में देखा था कि 12 विन्‍यास का अर्थ है कि पहली दो मात्राएं स्‍वतंत्र हों और तीसरी संयुक्‍त हो तथा इसका नाम हमने दिया था वतद मजमुआ । वतद मजमुआ के उदाहरण में सनम, कहीं, कहां, तुम्‍हें आदि हैं । इसके अलावा 2 विन्‍यास में हमने देखा था कि पहली मात्रा स्‍वतंत्र और दूसरी संयुक्‍त का उदा‍हरण था सबब-ए-ख़फ़ीफ़ । तो इसका मतलब ये हुआ कि यदि हमको पांच मात्रिक फऊलुन रुक्‍न बनाना हो तो दो प्रकार के जुज उठाकर उनकी जुजबंदी करनी होगी । वतद मजमुआ + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ = फ़ऊलुन ( बहरे मुतक़ारिब का स्‍थायी रुक्‍न । ) तो इस प्रकार से हमने आठ स्‍थायी रुक्‍नों में से पहला पांच मात्रिक रुक्‍न बना लिया जिसका विन्‍यास हुआ फ़ऊल़न । उदाहरण :- कहीं पर, तुम्‍हारे, हमारे, इधर हम, उधर तुम, सनम ने, क़सम से ।

फाएलुन :- ये पांच मात्रिक रुक्‍न का दूसरा और अंतिम स्‍थायी रुक्‍न है । याद रखें की बात केवल स्‍थायी रुक्‍नों की चल रही है । तो जो दो पांच मात्रिक रुक्‍न हैं वे हैं फ़ऊलुन तथा फ़ाएलुन उनमें से दूसरे का विन्‍यास देखते हैं । पहले वाले का उल्‍टा विन्‍यास है ये । 21+2=212 इसका मतलब ये हुआ कि हमको जो जुज लेने हैं उनमें एक तो पिछला वाला ही है सबब-ए-ख़फ़ीफ़ जिसका विन्‍यास है 2 प‍हली मात्रा स्‍वतंत्र दूसरी संयुक्‍त । अब जो दूसरा जुज हमको चाहिये वो है 21  अर्थात पिछले का उल्‍टा । तो हमने पिछले अंक में देखा था कि तीन मात्रिक जुज में जब पहली मात्रा स्‍वतंत्र हो दूसरी संयुक्‍त हो और तीसरी फिर स्‍वतंत्र हो तो उस व्‍यवस्‍था को वतद मफ़रूफ़ कहा गया था । वतद मफरूफ के उदाहरण में  आप, शहृर, गांव जैसे शब्‍द आते हैं । तो कुल मिलाकर नतीज़ा ये निकला कि हमने कुछ इस प्रकार से जुज़बंदी की वतद मफ़रूफ़ + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ = फ़ाएलुन इस प्रकार से हमने पांच मात्रिक विन्‍यास का दूसरा तथा अंतिम रुक्‍न फ़ाएलुन ( बहरे मुतदारिक का स्‍थायी रुक्‍न ) बना लिया । उदाहरण : आदमी, जिंदगी, ग़म न कर, रात भर, हम कहां ।

तो इस प्रकार से होती है दो बहरों के स्‍थायी रुक्‍नों की उत्‍पत्ति । ये दोनों ही मुफ़रद बहरें हैं ।  मुतदारिक तथा मुतकारिब । और दोनों ही पांच मात्रिक रुक्‍नों से मिलकर बनी हैं । अब बचते हैं बाकी के 6 रुक्‍न । उनकी जुजबंदी इसलिये मुश्किल है थोड़ी सी कि वे सारे के सारे ही सात मात्रिक हैं । उनमें से पांच रुक्‍नों पर तो बाक़ायदा मुफ़रद बहरें भी हैं । एक रुक्‍न है जिस पर कोई मुफ़रद बहर नहीं है । ये तो आपको पता ही होगा कि कुल मिलाकर सात ही मुफ़रद बहरें  हैं । तो आज उन सात में से दो बहरों के रुक्‍नों का निर्माण हमने कर लिया है । अगले अंक में ( जो जल्‍द ही लाने का प्रयास किया जायेगा इंशाअल्‍लाह । इतनी देर नहीं लगेगी । ) हम बाकी के 6 रुक्‍नों का निर्माण करेंगें ।

( मुफ़रद बहरें :- जो कि एक ही प्रकार के रुक्‍नों के संयोग से बनती हैं । )

क्षमा चाहता हूं कि समय के अभाव के कारण प्रश्‍नोत्‍तर का सिलसिला यहां पर नहीं चला सकता हूं । क्‍योंकि जब पोस्‍ट लगाने के लिये ही समय निकालना पड़ रहा हो तो उसके लिये और मुश्किल होगा । एक निवेदन है यदि कमेंट में कोई प्रश्‍न आता है और आपको लगता है कि उसका उत्‍तर आपके पास है तो उसे कमेंट के माध्‍यम से दे दें । ताकि प्रश्‍न का समाधान हो जाये और मेरा भी काम आसान हो जाये ।