शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ग़ज़ल का ध्‍वनि विज्ञान बहुत ही संतुलन का खेल है, इतना कि बहर के बारे में जानने वाला बारीक सी ग़लती को भी केवल कान से सुन कर ही पकड़ लेता है ।

ध्‍वनियां हमारे जीवन में इस प्रकार से भरी हैं कि उनके बिना हमारा काम ही नहीं चलता है । नाद ईश्‍वर के द्वारा दिया गया सबसे अनुपम उपहार है । नाद जो हम क्रमश: चार स्‍थानों से पैदा करते हैं । आम जन मुंह से बोलते हैं इस प्रकार का बोलना कोई प्रभावशाली नहीं होता है । फिर आता है कंठ से बोलना ये प्रभाव उत्‍पन्‍न करता है क्‍योंकि इसमें अधिक बाइब्रेशन होते हैं । फिर ह्रदय से बोला जाता है ये और अधिक बाइब्रेशन उत्‍पन्‍न करता है । चौथा नाद होता है जो सीधे नाभि से आता है । ये नाद सुनने वाले को सम्‍मोहित कर देता है । आपने कुमार गंधर्व साहब को सुना होगा वे नाभि से स्‍वर उत्‍पन्‍न करते थे । ओम के अभ्‍यास से हम अपने स्‍वर को क्रमश: मुंह से कंठ कंठ से ह्रदय और ह्रदय से नाभि में ले जा सकते हैं । हालांकि कंठ से ह्दय मुश्किल और ह्रदय से नाभि बहुत मुश्किल काम है । किन्‍तु अभ्‍यास से सब हो सकता है । ओम की में तीन ध्‍वनियां होती हैं इनमें सबसे अधिक बाइब्रेशन म में होते हैं । आप भी अभ्‍यास करें कभी ओम के साथ और कुछ दिनों के बाद ही आपको लगेगा कि आपके बाइब्रेशन आपके कंठ से नाभि तक दौड़ रहे हैं । कई बारे किसी के बोलने में कुछ ऐसा होता है कि सुनने वाले ठगे से रह जाते है़ । तो क्‍या होता है उसमें ऐसा कि लोग उसको इस प्रकार से सुनते हैं । दरअसल में ये वही बात है कि स्‍वर पूरे कंपन के साथ उत्‍पन्‍न हो रहा है ।

खैर हमने पिछले अंक  में बात की थी जुज़ की तो अपनी उस चर्चा को आज आगे बढ़ाते हैं । और आज बात करते हैं कुछ आगे की ।

ग़ज़ल के सबसे छोटे खंड की चर्चा हम लोग कर रहे हैं । ममलब कि रुकन से भी छोटी इकाइयों की बात हो रही है । हम बात कर रहे हैं जुज़ की । जिन टुकड़ों से रुक्‍न बनते हैं उनको जुज़ कहा जाता है ये हमने पिछले अंक में जाना था । आज हम ये देखते हैं मूल रूप से मात्राओं की कुल कितने प्रकार की व्‍यवस्‍थाएं की गई हैं । या यूं कहें कि कितने प्रकार के जुज बनाए गए हैं । पहले तो हम एक बार जान लें कि लघु और दीर्घ मात्राओं पर ही सारा खेल होता है जो कुछ भी बनाया जायेगा वो इनसे ही बनेगा ।

I लघु  S दीर्घ

मुख्‍य रूप से तीन प्रकार के जुज़ बनाये गये हैं । ये मात्राओं की संख्‍या के आधार पर बनाये गये हैं ।

1 सबब 2 वतद 3 फासला

जानने से पहले हम बात करें दो शब्‍दों की मुतहर्रिक और साकिन । दरअसल में जिन्‍होंने गणित पढ़ी होगी तो उन्‍होंने स्‍टेटिक और डायनामिक शब्‍द सुने होंगें । मैंने नहीं पढ़े क्‍योंकि मैंने गणित नहीं पढ़ी है ।ये दोंनों शब्‍द वहीं से आये हैं । दो हिंदी के शब्‍द होते हैं स्थिर और गतिशील । अंग्रेजी के भी दो शब्‍द हैं dominant and recessive ये भी लगभग वैसे ही शब्‍द हैं । हालांकि अर्थ में कुछ भिन्‍नता हो सकती है । dominant and recessive  ये शब्‍द आनुवांशिकी से आये हैं । हाइब्रिड या संकर नस्‍ल पैदा करते समय एक जीन के कैरेक्‍टर डामिनेंट हो जाते हैं और दूसरे के रेसेसिव रह जाते हैं । जो नयी प्रजाति बनती है उसमें ये प्रभाव साफ दिखाई देता है । यहां पर भी हम मात्राओं के संकर से नया स्‍वर पैदा कर रहे हैं । चूंकि संकर बना रहे हैं इसलिये किसी को डामिनेंट और किसी को रेसेसिव होना ही पड़ेगा । संकर शब्‍द जिनको समझ में नहीं आ रहा हो उनको बता दूं कि जब दो प्रजातियों का कृत्रिम रूप से मेल कर नयी प्रजाति बनाई जाती है तो उस नयी प्रजाति को संकर नस्‍ल कहा जाता है । गेहूं, सोयाबीन और तुवर की अधिक उत्‍पादन वाली काफी सारी संकर प्रजातियां हैं । एक बहुत अच्‍छा उदाहरण है बरसात में उगने वाली गुलमेंहदी । जिसमें कई तरह फूल होते हैं । तो हम भले ही मुतहर्रिक, डायनामिक, गतिशील, डामिनेंट कुछ भी कहें अर्थ लगभग एक ही है और उसी प्रकार चाहे साकिन, स्‍टेटिक, स्थिर, रेसेसिव, सायलेंट कुछ भी कह लें बात एक ही होगी । मतलब ये कि जब आप दो मात्राओं का संकर करके एक नया स्‍वर बना रहे हैं तो उन दोंनों मात्राओं में से कौन सी मुतहिर्रक (डामिनेंट ) रहेगी तथा कौन सी साकिन (रेसिसिव या सायलेंट) हो जायेगी बस ये ही छोटी सी बात है ।

आइये आज बात करते हैं पहले सबब की ।

1 सबब ( दो मात्रिक व्‍यवस्‍था )

दो मात्राओं वाली व्‍यवस्‍था को सबब कहा गया है । अर्थात जब किसी जुज़ को बनाने में कुल मिलाकर दो ही मात्राओं को उपयोग किया गया हो तो उसको सबब कहा जाता है । यह पुन: दो प्रकार का होता है ।

1 सबब ए खफ़ीफ़ 2 सबब ए सक़ील ( नाम से मत उलझियेगा दरअसल में ये अरबी फारसी के नाम हैं आप इनको यूं भी कह सकते हैं कि दो प्रकार की व्‍यवस्‍था है स्‍वतंत्र द्विमात्रिक और संयुक्‍त द्विमात्रिक ।)

 सबब ए ख़फ़ीफ़

वह दो मात्रिक व्‍यवस्‍था जिसमें पहली मात्रा मुतहर्रिक हो तथा दूसरी मात्रा साकिन हो गई हो उसको सबब ए ख़फ़ीफ़ कहा जाता है । इसको हम एक दीर्घ की तरह ही लेते हैं । दो लघु मात्राएं जिनको हम एक दीर्घ की तरह लेते हैं उनके उदाहरण आपको बताने हैं । यानि कि सबब ए ख़फ़ीफ़ के उदाहरण ।

सबब ए सक़ील

वह दो मात्रिक व्‍यसस्‍था जिसमें दोनों ही मात्राएं स्‍वतंत्र हों । अर्थात जब दो लघु मात्राएं इस प्रकार से मिल कर ज़ुज़ बना रही हों कि उन दोनों में से कोई भी सायलेंट नहीं हो रहा हो तो उस स्थिति में हम कहते हैं कि ये सबब ए सकी़ल है । ऊपर भी दो लघु मात्राएं थीं और यहां पर भी हैं बस अंतर इतना है कि ऊपर दो लघु में से एक पहली मुतहर्रिक थी दूसरी साकिन, यहां पर दोनों ही मुतहरर्कि हैं । उदाहरण आप बताएं ।

2 वतद ( तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था )

वतद तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था है । अर्थात इस प्रकार के जुज जिनमें तीन मात्राएं आ रही हों उनको वतद कहा जाता है । यहां पर भी पुन: दो प्रकार की किस्‍में होती हैं ।

1 वतद मज़मुआ 2 वतद मफ़रूफ़ 

वतद मज़मुआ जब तीन मात्राओं को इस प्रकार से मिलाकर एक ज़ुज़ बनाया जा रहा हो कि प्रारंभ की दो मात्राएं तो मुतहर्रिक हों तथा तीसरी मात्रा साकिन हो रही हो । तीन लघु को इस प्रकार से मिलाया जाये कि पहला लघु बिल्‍कुल स्‍वतंत्र हो दूसरा भी स्‍वतंत्र हो और तीसरा दूसरे में समा कर सायलेंट हो रहा हो । और कुछ 12 इस प्रकार का जुज़ बन रहा हो तब इसको हम कहते हैं कि ये वतद मज़मुआ है । उदाहरण आप बताएं ।

वतद मफ़रूफ़ जब तीन मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जाता है कि पहली मात्रा स्‍वतंत्र हो दूसरी वाली पहली में समा कर सायलेंट हो रही हो तथा तीसरी पुन: स्‍वतंत्र हो तो उसको कहा जात है कि ये वतद मज़मुआ है । और कुछ 21 इस प्रकार से जुज़ बनता है । उदाहरण आप बताएं ।

3 फासला ( चार तथा पांच मात्रिक व्‍यवस्‍था )

जब चार या पांच मात्राओं को मिलाकर एक जुज़ बनाया जा रहा हो तो उसे फासला कहा जाता है । इसकी भी दो किस्‍में हैं ।

1 फासला ए सुगरा 2 फासला ए कुवरा

1 फासला ए सुगरा  जब चार मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जा रहा हो कि प्रारंभ की तीन मात्राएं मुतहर्रिक हों तथा चौथी सकिन हो रही हो तो उसको हम फासला ए सुगरा कहते हैं । 112 के उदाहरण आप बताएं ।

2 फासला ए कुवरा  जब पांच मात्राओं को इस प्रकार से मिलाया जा रहा हो कि प्रारंभ के चार मुत‍हर्रिक हों तथा पांचवी साकिन हो रही हो तो उसको फासला ए कुवरा कहा जाता है । 1112 के उदाहरण आप बताएं ।

तो इस प्रकार से ये सारे के सारे जुज़ होते हैं । जुज़ का मतलब है कि मात्राओं की निश्चित व्‍यवस्‍था । जुज़ को यदि हम जान गये तो बहर को जानना इसलिये आसान हो जाता है कि हम ने सबसे छोटी इकाई को जान लिया । इन जुज़ों से ही बनेंगें रुक्‍न जिनको बनाना हम अगले अंक में सीखेंगें । रुक्‍नों में मात्राओं की कम बढ़ करना सीखना हो तो पहले जुज़ को तो जानना ही होगा ।

सारे उदाहरण टिप्‍पणी में द‍ीजिये । कुछ विस्‍तार से चर्चा करेंगें तो समझ में आयेगा । कृपया बहुत अच्‍छा लिखा, नाइस, अच्‍छा है जैसे कमेंट करने से बेहतर है कि कमेंट ना ही करें ।