गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

बहुत दिनों के बाद आज यहां पर कुछ लगा रहा हूं । तो आज चलिये यहां पर बात करते हैं सप्‍तमात्रिक रुक्‍नों की ।

गज़ल का सफ़र ये ब्‍लाग जब शुरू किया था तो ये सोचा था कि इस ब्‍लाग पर इस प्रकार से पोस्‍ट लगाऊंगा कि वो एक पुस्‍तक का आकार ले ले । क्‍योंकि इस विधा पर एक पुस्‍तक लिखने की इच्‍छा भी है और ये भी पता है कि अलग से बैठ कर पुस्‍त्‍क लिखने का समय नहीं है । तो इस ब्‍लाग के पीछे स्‍वार्थ ये था कि इस बहाने पुस्‍तक भी लिखा जायेगी । इसको सीमित पाठकों तक रखने के पीछे कारण ये था कि यदि सभी ने ब्‍लाग पर पढ़ लिया तो फिर पुस्‍तक कौन पढ़ेगा । खैर जो भी हो और जैसा भी लेकिन ये बात तो है कि योजना वैसे नहीं चल पाई जैसा कि सोचा था । इस बीच इस ब्‍लाग को लेकर एक आदरणीय भी नाराज़ हो गये । उनका कहना था कि मैंने उनसे शिवना प्रकाशन के लिये ग़ज़ल की तकनीक पर पुस्‍तक लिखने को कहा और अब मैं स्‍वयं ही इस तकनीक पर ब्‍लाग में विस्‍तार से लिखने लगा । मैंने उनसे बात की, उनको समझाने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने । खैर ये तो सब समझ समझ का फेर होता है । इस बीच काफी कुछ होता गया । और ये भी लगा कि कहानी वो विधा है जो मुझे पहचान दिलवा रही है । हालांकि ब्‍लाग पर मेरी पहचान ग़ज़ल के कारण है । फिर भी कहानी को लेकर ज्‍यादा गंभीर होना है ये बात कही न कहीं मन में थी । और ज्ञानपीठ नवलेखन के बाद से तो ये बात और दिमाग़ में समा गई कि कहानी अधिक समय मांग रही है ।

खैर जो हो, जैसा हो चलिये आज हम कुछ आगे चलते हैं और अब पिछली पोस्‍ट में छोड़ी हुई बात को ही आगे बढ़ाते हैं । पिछली बार हमने पंचमात्रिक रुक्‍नों की बात की थी, इस बार सप्‍त मात्रिक रुक्‍नों की बात करते हैं । आगे बढ़ने से पहले चलिये पहले पिछला कुछ दोहरा लेते हैं नहीं तो आगे पाठ पीछे सपाट की स्थिति बन जायेगी ।

हमने पिछले पाठों में देखा था कि मात्रा से जुज, जुज से रुक्‍न, रुक्‍न से मिसरा, मिसरों से शेर और शेर से ग़ज़ल बनती है ।  यहां ये बात जान लें कि जुज  का बहुवचन अजजा  है, रुक्‍न  का बहुवचन अरकान  है और शेर का  अशआर ।

जुज :  जुज जो हमने देखे थे वे सबब (द्विमात्रिक), वतद (त्रैमात्रिक), फासला (चर्तुमात्रिक, पंचमात्रिक ) थे । उसमें भी सबब के दो प्रकार सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2 तथा सबब-ए-सक़ील 11, वतद के दो प्रकार वतद-ए-मजमुआ 12, वतद-ए-मफ़रूफ़ 21  और फासला के दो प्रकार फासला-ए-सुगरा 112, फासला-ए-कुबरा 1112, इस प्रकार से कुल हमारे हाथ में 6 प्रकार के जुज आये । जिनसे हमें रुक्‍न बनाने हैं ।

रुक्‍न -  कम से कम दो तथा अधिक से अधिक तीन जुजों के मेल से बनते हैं रुक्‍न । रुक्‍न  भी दो प्रकार के होते हैं खुमासी ( पंचमात्रिक) और सुबाई ( सप्‍तमात्रिक) । रुक्‍नों के बारे में हमने ये देखा था कि कुल आठ प्रकार के स्‍थाई रुक्‍न हैं । ये जो कुल आठ प्रकार के स्‍थाई रुक्‍न हैं इनसे ही सारे उपरुक्‍न बनाये गये हैं । ये आठ रुक्‍न हैं फऊलुन, फाएलुन, फाएलातुन, मुस्‍तफएलुन, मुफाईलुन, मफऊलातु, मुतफाएलुन और मुफाएलतुन ।  इन आठ प्रकार के रुक्‍नों में से हमने पहले दो पंचमात्रिक रुक्‍नों (खुमासी) के बनने की कहानी पिछली पोस्‍ट में जान ली थी जिनके बारे में संक्षिप्‍त सा रिविज़न ये

खुमासी रुक्‍न-

ये दो प्रकार के होते हैं ।

1) फऊलुन जब पहले एक वतद-ए-मजमुआ 12 रख कर उसके पीछे एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2 को जोड़ा जाता है तो ये रुक्‍न बनता है ।

वतद-ए-मजमुआ 12 + सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2 = 122 फऊलुन  ( बहरे  मुतकारिब का स्‍थाई रुक्‍न )

2) फाएलुन जब पहले एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2  रख कर उसके पीछे एक वतद-ए-मजमुआ 12 को जोड़ा जाता है तो ये रुक्‍न बनता है ।

सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2 + वतद-ए-मजमुआ 12  = 212 फाएलुन  ( बहरे  मुतदारिक का स्‍थाई रुक्‍न )

और अब आज बात करते हैं सप्‍त मात्रिक रुक्‍नों ( सुबाई ) की ।

सुबाई रुक्‍न - 

ये कुल तीन प्रकार के रुक्‍न होते हैं । मफरूफी, मजमुई, फासलादारआइये अब इनकी बात करते हैं ।

मफरूफी सुबाई रुक्‍न : 

जब किसी रुक्‍न को बनाने के लिये एक वतद-ए-मफरूफ़ 21  के साथ दो सबब-ए-ख़फीफ़ 2 संयुक्‍त किये जाते हैं तो उस प्रकार के संयोग ये जो रुक्‍न बनता है उसको हम मफ़रूफ़ी सुबाई रुक्‍न  कहते हैं । चूंकि इसके संगठन में मुख्‍य भूमिका में वतद-ए-मफरूफ़ 21  है इसलिये इसे मफरूफी रुक्‍न कहते हैं ।  ये दो प्रकार के होते हैं ।

1) फाएलातुन :  जब वतद-ए-मफरूफ़ 21   को पहले स्‍थान पर रख कर उसके साथ दो सबब-ए-ख़फीफ़ 2 उसके पीछे एक के बाद एक जोड़ दिये जाते हैं तो उससे ये रुक्‍न बनता है ।

वतद-ए-मफरूफ़ 21   +  सबब-ए-ख़फीफ़ 2 + सबब-ए-ख़फीफ़ 2 = 2122 फाएलातुन ( बहरे रमल का स्‍थाई रुक्‍न )

2) मफऊलातु : जब पहले दो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2  एक के बाद एक रख कर उसके बाद एक वतद-ए-मफ़रूफ़ 21 जोड़ा जाता है तो उससे ये रुक्‍न बनता है ।

सबब-ए-ख़फीफ़ 2 + सबब-ए-ख़फीफ़ 2 + वतद-ए-मफरूफ़ 21 = 2221 मफ़ऊलातु ( इस रुक्‍न पर कोई भी मुफ़रद बहर नहीं है । ये एक मात्र रुक्‍न है जिस पर कोई भी मुफ़रद बहर नहीं है । )

मजमुई सुबाई रुक्‍न : 

जब किसी रुक्‍न को बनाने में एक वतद-ए-मजमुआ 12 तथा उसके साथ दो सबब-ए-ख़फीफ़ 2  संयुक्‍त किये जाते हैं तो उससे ये रुक्‍न बनता है, चूंकि इसके संगठन में मुख्‍य भूमिका में वतद-ए-मजमुआ  है इसलिये इसे मजमुई रुक्‍न कहते हैं । ये भी दो प्रकार के होते हैं ।

1)  मुफाईलुन : जब वतद-ए-मजमुआ 12  को पहले स्‍थान पर रख कर उसके साथ दो सबब-ए-ख़फीफ़ 2 उसके पीछे एक के बाद एक जोड़ दिये जाते हैं तो उससे ये रुक्‍न बनता है ।

वतद-ए-मजमुआ 12    +  सबब-ए-ख़फीफ़ 2 + सबब-ए-ख़फीफ़ 2 = 1222 मुफाईलुन ( बहरे हज़ज का स्‍थाई रुक्‍न )

2) मुस्‍तफएलुन : जब पहले दो सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2  रख कर उसके बाद एक वतद-ए-मजमुआ 12 जोड़ा जाता है तो उससे ये रुक्‍न बनता है ।

सबब-ए-ख़फीफ़ 2 + सबब-ए-ख़फीफ़ 2 + वतद-ए-मजमुआ 12 = 2212 मुस्‍तफएलुन ( बहरे रज़ज का स्‍थाई रुक्‍न)

फासलादार सुबाई रुक्‍न :

जब किसी रुक्‍न को बनाने में एक फासला-ए-सुगरा 112 और एक वतद-ए-मजमुआ 12 को संयुक्‍त किया जाता है तो उसको फासलादार रुक्‍न कहते हैं । चूंकि इसके बनाने में जो दो रुक्‍न उपयोग हो रहे हैं उनमें बड़ा रुक्‍न फासला-ए-सुगरा 112   है इसलिये इसको फासलादार सुबाई रुक्‍न कहते हैं । इसके भी दो प्रकार हैं ।

1) मुतफाएलुन :  जब एक फासला-ए-सुगरा 112 और एक वतद-ए-मजमुआ 12 को इस प्रकार से संयुक्‍त किया जाता है कि फासला-ए-सुगरा 112  पहले आये तथा वतद-ए-मजमुआ 12 बाद में तो उससे ये रुक्‍न बनता है ।

फासला-ए-सुगरा 112 + वतद-ए-मजमुआ 12 = 11212 मुतफाएलुन ( बहरे कामिल का स्‍थाई रुक्‍न ) 

2) मुफाएलतुन : जब एक फासला-ए-सुगरा 112 और एक वतद-ए-मजमुआ 12  को इस प्रकार से संयुक्‍त किया जाता है कि वतद-ए-मजमुआ 12 पहले आये तथा  फासला-ए-सुगरा 112  बाद में तो उससे ये रुक्‍न बनता है ।

वतद-ए-मजमुआ 12 + फासला-ए-सुगरा 112 = 12112 मुफाएलतुन ( बहरे वाफ़र का स्‍थाई रुक्‍न ) 

विशेष बात : कुछ रोचक बातें भी चलिये जान ली जाएं । रोचक बात ये कि फाएलातुन नाम का जो रुक्‍न है वह मुस्‍तफ़एलुन  नाम के रुक्‍न की मिरर इमेज ( दर्पण छवि ) है । कैसे नीचे देखें ।

2122 : 2212

यदि बीच की दो बिंदियों को दर्पण माना जाए तो 2122  ठीक प्रतिबिम्‍ब हमें 2212 में मिल रहा है ।

इसी प्रकार से यदि हम मुफाईलुन तथा मफऊलातु  को देखें तो ये दोनों भी एक दूसरे की दर्पण छवि बनाते हैं ।

1222 : 2221

1222 का ठीक प्रतिबिम्‍ब हमें 2221 में मिल रहा है ।

एक और रोचक बात ये कि मुफाईलुन, फाएलातुन, मुस्‍तफएलुन, मफऊलातु में एक लघु मात्रा क्रमश: पहले, दूसरे, तीसरे तथा चौथे तक खिसकती जाती है । 1222, 2122, 2212, 2221 ।

तो इस प्रकार से बनते हैं ये आठों रुक्‍न, ये आठ रुक्‍न हैं फऊलुन, फाएलुन, फाएलातुन, मुस्‍तफएलुन, मुफाईलुन, मफऊलातु, मुतफाएलुन और मुफाएलतुन जिनसे बनती हैं हमारी सारी की सारी बहरें । इन्‍हीं आठों रुक्‍नों से बनती हैं हमारी सातों मुफरद बहरें मुत‍कारिब, मुतदारिक, रमल, रज़ज, हज़ज, कामिल और वाफ़र ।

तो चलिये मिलते हैं अगले अंक में,..... यदि आप लोगों की मिलने की इच्‍छा होगी तो

और हां उपस्थिति दर्ज नहीं हुई तो कक्षा से नाम कट जायेगा । ये नियम अब कड़ाई से पालन किया जायेगा । इसी अंक से कुछ छात्रों के नाम काट दिये गये हैं ।